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नई दिल्ली : देश के तमाम मेडिकल कॉलेजों में दाखिला लेने के लिए जरूरी नेशनल एलिजिबिलिटी कम एंट्रेंस टेस्ट (नीट) को लेकर मद्रास हाईकोर्ट की मदुरै बैंच ने एक अहम फैसला लिया है. एक याचिका पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने कहा है कि कुछ उम्मीदवारों को ज्यादा नंबर दिए जाएंगे. कोर्ट ने कहा है कि एक भाषा के छात्रों को 196 अंक ज्यादा दिए जाएंगे.
::/introtext::क्या है पूरा मामला
दरअसल, पिछले दिनों कोर्ट में कुछ तमिल भाषा के छात्रों याचिका दायर करते हुए कहा था कि परीक्षा में 49 सवालों का अनुवाद गलत किया गया था, जिसके कारण वह उत्तर पुस्तिका में जवाब भी गलत भरकर आए हैं, ऐसे में उन्हें उन प्रश्नों के ज्यादा नंबर दिए जाए. कोर्ट में दायर याचिका में यह भी कहा गया है कि प्रत्येक प्रश्न 4 नंबर का था, इसलिए उन्हें 196 अंक ज्यादा दिए जाए. अभ्यार्थियों की मांग और मामले की जांच करने के बाद कोर्ट ने इसे अनुमित दी है.
दोबारा जारी होगी रैंक
मामले की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने नीट परीक्षा आयोजित कराने वाले सीबीएसई बोर्ड को दोबारा से नीट की रैंक जारी करने के आदेश जारी किए हैं. कोर्ट ने अपने आदेश में रैंक जारी करने के लिए सीबीएसई को दो सप्ताह का समय दिया है. कोर्ट ने कहा कि सभी मेडिकल काउंसलिंग निरस्त की जाएंगी.
साल में दो बार होगी नीट परीक्षा
बता दें कि, कुछ वक्त पहले ही केंद्र सरकार द्वारा फैसला लिया गया था कि नीट परीक्षा का आयोजन अब साल में दो बार किया जाएगा. केंद्र सरकार ने कहा था कि नीट परीक्षा हर साल फरवरी और मई में कंप्यूटर के जरिए करवाई जाएगी.
नई दिल्ली। छात्रों को अब नीट (नेशनल एलिजबिलिटी कम इंट्रेंस टेस्ट) और ज्वाइंट इंट्रेंस एग्जामिनेशन-मेंस (जेईई मेंस) की परीक्षाओं में शामिल होने के लिए साल में दो बार मौका मिलेगा।
सरकार ने इन परीक्षाओं को कराने का जिम्मा केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) से लेकर नेशनल टेस्टिंग एजेंसी (एनटीए) को दे दिया है जो अब आगे से इन सभी परीक्षाओं का आयोजन करेगी।
::/introtext::इसके तहत नीट की परीक्षा हर साल फरवरी और मई में जबकि जेईई मेंस की परीक्षा जनवरी और अप्रैल में होगी। एनटीए इनके अलावा यूनिवर्सिटी ग्रांट कमीशन- नेशनल एलिजबिलिटी टेस्ट (यूजीसी नेट), कॉमन मैनेजमेंट एडमिशन टेस्ट (सीमैट) और ग्रेजुएट फार्मेसी एप्टीट्यूट टेस्ट (जीपैट) की परीक्षाओं का आयोजन भी करेगी।
यूजीसी नेट की अगली परीक्षा दिसंबर में होगी। इसकी तारीखों की घोषणा जल्द की जाएगी। केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने शनिवार को यह जानकारी देते हुए बताया कि ये सभी परीक्षाएं कंप्यूटर बेस्ड (ऑनलाइन नहीं) होंगी।
ये लोकल नेटवर्किंग से जुड़ी होंगी। इससे इन परीक्षाओं की यह व्यवस्था दुनिया के दूसरे देशों की तरह फुलप्रूफ होगी। इससे लीकेज जैसी संभावनाएं पूरी तरह से खत्म हो जाएंगी।
उन्होंने साफ किया कि इन परीक्षाओं की जिम्मेदारी एनटीए के पास आने के बाद परीक्षा के स्लेबस और फीस में कोई बदलाव नहीं होगा। प्रश्नपत्रों का स्वरूप भी पहले की तरह ही रहेगा।
एक सवाल के जबाव में जावड़ेकर ने बताया कि नीट और जेईई मेंस की साल में दो बार होने वाली परीक्षाओं में छात्र दोनों में या किसी एक परीक्षा में शामिल हो सकेंगे।
उनके चयन का आधार दोनों परीक्षाओं में से जिसमें अच्छा स्कोर होगा, उसके आधार पर ही होगा।
मालूम हो कि सरकार ने नीट परीक्षाओं को लेकर उठे सवाल के बाद पिछले साल ही ऐसी सभी शैक्षणिक परीक्षाओं के लिए एनटीए गठन की घोषणा की थी। माना जा रहा है कि एजेंसी ने अपना काम शुरू कर दिया है।
कंप्यूटर का मिलेगा निःशुल्क प्रशिक्षण
कंप्यूटर बेस्ड होने वाली इन परीक्षाओं को लेकर छात्रों को कोई दिक्कत न आए, इसलिए छात्रों को परीक्षाओं से पहले कंप्यूटर पर प्रशिक्षण दिया जाएगा।
यह प्रशिक्षण परीक्षाओं के लिए देशभर में चिह्नित होने वाले कंप्यूटर केंद्रों पर दिया जाएगा। छात्रों से इसका कोई शुल्क नहीं लिया जाएगा। एनटीए जल्द ही देशभर के ऐसे सभी कंप्यूटर केंद्रों की सूची जारी करेगी।
छात्रों को साल भर नहीं करना होगा इंतजार
नीट और जेईई मेंस की परीक्षाएं साल में दो बार कराने से छात्रों को जो सबसे बड़ा फायदा मिलेगा, वह यह कि यदि किन्हीं कारणों से उनकी कोई परीक्षा गड़बड़ हो जाए या छूट जाए, तो उन्हें इसे सुधारने का एक और मौका मिलेगा। अभी ऐसी स्थिति में छात्रों को पूरे साल का इंतजार करना होता था।
अभिभावक लंबे समय से इसकी मांग कर रहे थे। मौजूदा समय में हर साल लगभग 13 लाख छात्र नीट और 12 लाख छात्र जेईई मेंस की परीक्षाओं में हिस्सा लेते हैं।
::/fulltext::ओशो
शिक्षालयों से गुजर कर स्वयं की प्रतिभा को बचा लेने से अधिक दुरूह कार्य और कोई भी नहीं है। विश्वविद्यालयों ने मौलिक प्रतिभाओं को नष्ट करने में अपनी कुशलता का चरम बिंदु तो बहुत पहले ही उपलब्ध कर लिया है। मनुष्य की परतंत्रता के लिए ही अनुशासन पर अत्यधिक बल दिया जाता है। विवेक के अभाव की पूर्ति अनुशासन से करने की कोशिश की जाती है।
::/introtext::विवेक हो तो व्यक्ति में और उसके जीवन में एक स्वत:स्फूर्त अनुशासन अपने आप ही पैदा होता है। उसे लाना नहीं पड़ता है। वह तो अपने आप ही आता है। लेकिन जहां विवेक सिखाया ही न जाता हो, वहां तो ऊपर से थोपे अनुशासन पर ही निर्भर होना पड़ता है।
यह अनुशासन मिथ्या तो होगा ही। क्योंकि वह व्यक्ति के अंतस से नहीं जागता है और उसकी जड़ें उसके स्वयं के विवेक में नहीं होती हैं। व्यक्ति का अंत:करण तो सदा भीतर ही भीतर उसके विरोध में सुलगता रहता है।
ऐसे अनुशासन की प्रतिक्रिया में ही स्वच्छंदता पैदा होती है। स्वच्छंदता सदा ही परतंत्रता की प्रतिक्रिया है। वह उसकी ही अनिवार्य प्रतिध्वनि है। स्वतंत्रता से भरी चेतना कभी भी स्वच्छंद नहीं होती है। मनुष्य को स्वच्छंदता के रोग से बचाना हो तो उसकी आत्मा को परिपूर्ण स्वतंत्रता का वायुमंडल मिलना चाहिए। लेकिन हम तो दो ही विकल्प जानते हैं--परतंत्रता या स्वच्छंदता।
स्वतंत्रता के लिए तो हम अब तक तैयार ही नहीं हो सके हैं। अनुशासन - दूसरों से आया हुआ अनुशासन भी परतंत्रता है। ऐसा अनुशासन जगह-जगह टूट रहा है तो बहुत चिंता व्याप्त हो गई है। यह अनुशासन तो टूटेगा ही। यह तो टूटना ही चाहिए। उसके होने के कारण ही गलत हैं।
उसकी मृत्यु तो उसमें ही छिपी हुई है। वह तो अराजकता को बलपूर्वक स्वयं में ही छिपाए हुए है। और बलपूर्वक जो भी दमन किया जाता है, एक न एक दिन उसका विस्फोट अवश्यंभावी है।
ऐसा अनुशासन हो तो व्यक्ति चेतना की सारी सहजता और आनंद छीन लेता है और टूटे तो भी व्यक्ति को खंडहर कर जाता है। बाहर से आया हुआ अनुशासन सब भांति मनुष्य के अहित में है। शिक्षा बाह्यानुशासन से मुक्त होनी चाहिए। उसे तो व्यक्ति में प्रसुप्त विवेक को जगाना चाहिए।
फिर वह विवेक ही आत्मानुशासन बन जाता है। वैसी चर्या में न दमन होता है, न दबाव होता है। वैसी चर्या तो फूलों जैसी सहज और सरल होती है। और जीवन जब स्व-विवेक के प्रकाश में गति करता है तो अराजकता और स्वच्छंदता की संभावनाएं ही समाप्त हो जाती हैं। जहां दमन ही नहीं है, वहां अराजकता और स्वच्छंदता के विस्फोट भी असंभव हैं।
मैं पूछता हूं कि क्या हम मनुष्य को स्वतंत्र नहीं बना सकते हैं? स्वतंत्रता में स्वच्छंदता का भय मालूम होता है। क्योंकि हमने मनुष्य को परतंत्रताओं से दबा रखा है, और उसकी आत्मा सदा से ही उन परतंत्रताओं से छूटने को तड़फड़ाती रही है। और जब भी संभव हुआ है, उसने बंधन तोड़े हैं।
लेकिन बंधन तोड़ने के प्रयास में वह जिस कटुता, कठोरता और विरोध से भर जाती है, उसके ही कारण स्वतंत्र तो नहीं होती, स्वच्छंद हो जाती है। स्वतंत्रता सृजनात्मक है, स्वच्छंदता विध्वंसात्मक। लेकिन यदि स्वच्छंदता से बचना हो तो स्वतंत्रता के अतिरिक्त कोई मार्ग नहीं है।
शिक्षा निश्चय ही ऐसे आधार रख सकती है जो कि मनुष्य को स्वतंत्र बनाए। अनुशासित व्यक्ति अब नहीं चाहिए। स्वतंत्र और स्वयं के विवेक को उपलब्ध व्यक्ति चाहिए। उनमें ही आशा है और उनमें ही भविष्य है।
अनुशासन की प्रणालियों ने क्या किया है? मनुष्य में जड़ता और बुद्धिहीनता लाई है। अनुशासित व्यक्ति जड़ तो होगा ही। असल में जो जितना जड़ है उतना ही अनुशासित हो जाएगा। देखें, यंत्र कितने अनुशासित हैं? विवेक सदा 'हां" ही नहीं कहता कभी वह 'नहीं" भी कहता है। उसे 'नहीं" कहना भी आना चाहिए। उसके 'हां" में भी तभी मूल्य और अर्थ है अब, जब वह 'नहीं" कहना भी जानता हो।
लेकिन अनुशासन 'नहीं" कहना नहीं सिखाता है। वह तो सदा 'हां" ही की अपेक्षा करता है। कहा जाए - गोली चलाओ तो गोली चलाएगा। ऐसी जड़ता की शिक्षा के कारण ही तो दुनिया में युद्ध और हिंसा और भांति-भांति की मूर्खताएं चलती रही हैं और चल रही हैं।
क्या इस दुष्टचक्र को अब भी नहीं तोड़ना है? क्या अणु युद्ध के बाद ही अनुशासन लाने वाली शिक्षा बंद होगी? लेकिन तब तो बंद करने की कोई जरूरत ही नहीं होगी। क्योंकि तब न तो अनुशास्ता ही बचेंगे और न अनुशासित ही।
मनुष्य के भविष्य के लिए अनुशासित बुद्धि के लोगों से जितना खतरा है, उतना किसी और से नहीं। क्योंकि वे केवल आज्ञाएं मानना ही जानते हैं। अणु-अस्त्रों को चलाने के लिए भी वे आज्ञाशील व्यक्ति सदा तैयार और तत्पर हैं! काश! अनुशासन की जगह विवेक सिखाया गया होता, आज्ञाकारिता की जगह विचार सिखाया गया होता! तो निश्चय ही दुनिया बिलकुल दूसरी ही हो सकती थी।
शिक्षा अनुशासन देने को नहीं, आत्म-विवेक देने को है। उससे ही जो अनुशासन फलित होगा, वही शुभ और मंगलदायी हो सकता है। क्योंकि उस अनुशासन का फिर शोषण नहीं किया जा सकता। धर्म पुरोहितों और राजनीतिज्ञों के हाथ में हिंसा और युद्ध के लिए उसे उपकरण नहीं बनाया जा सकता।
उसके आधार पर हिंदू को मुसलमान से नहीं लड़ाया जा सकता है। और न राष्ट्रों की झूठी और कल्पित सीमाओं पर ही रक्तपात के तांडव-नृत्य किए जा सकते हैं। अनुशासन और आज्ञाकारिता के नाम पर मनुष्य से क्या नहीं कराया गया है? इसलिए अब विवेक की जरूरत है, अनुशासन की नहीं। अनुशासन मनुष्य रूपी यंत्र पैदा करता है, मानव के विकास के लिए विवेक की आवश्यकता है।
::/fulltext::मानसून के दस्तक के साथ ही बरसात के मौसम में इलेक्ट्रॉनिक्स गैजेट्स या डिवाइस के खराब होने का ज्यादा खतरा रहता है। ऐसे में यदि आप अपने स्मार्टफोन, पीसी, लैपटॉप से लेकर फ्रिज या एसी तक को खराब होने से बचाना चाहते हैं, तो इन 5 बातों का ध्यान रखना जरूरी है।
बिजली कड़कने के दौरान ये करें काम -
तूफान या फिर बिजली कड़कने के दौरान अपने इलेक्ट्रॉनिक्स सामान को बंद कर दें। दरअसल हाई वोल्टेज आपके गैजेट्स को खराब कर सकते हैं, इसलिए सॉकेट में लगे इलेक्ट्रॉनिक गैजेट को बंद कर दें। अच्छा होगा कि इस दौरान आप अपने स्मार्टफोन को स्विच ऑफ कर दें। इसके अलावा तूफान आने पर कई बार वोल्टेज में उतार-चढ़ाव आता रहता है, जिससे घर के कई डिवाइस पर असर पड़ता।
सॉकेट को चार्जिंग से पहले करें चेक -
मानसून के दौरान खिड़की और बालकनी के आस-पास की दीवारों में नमी आ जाती है, जिसके चलते इन दीवारों पर लगे इलेक्ट्रिक सॉकेट में भी नमी आ जाती है इसलिए स्मार्टफोन से लेकर किसी भी इलेक्ट्रिक डिवाइस को इन सॉकेट पर चार्ज करने से पहले इन्हें चेक कर लें। गीली या नम दीवार में लगे सॉकेट से चार्ज करने पर आपका गैजेट्स या डिवाइस खराब हो सकता है।
इस दौरान न करें चार्ज -
अगर आप बारिश में होते हुए घर या ऑफिस आए हैं, तो अपने लैपटॉप या स्मार्टफोन को चार्जिंग पर तुरंत न लगाएं। दरअसल वॉटरप्रुफ बैग आपके डिवाइस को पानी से तो बचा लेते हैं, लेकिन बैग पर लगातार पानी गिरने से बैग के अंदर रखे गैजेट्स में नमी आ सकती है। ऐसे में घर पहुंचने के बाद तुरंत अपने डिवाइस को चार्जिंग पर न लगाएं।
घर में न होने दें नमी -
गैजेट्स और इलेक्ट्रॉनिक्स सामान के अगल-बगल धूल जमा हो जाती हैं। मानसून में यही धूल नमी के कारण फंगस की शक्ल ले लेती है इसलिए मानसून में अपने कमरे और घर को साफ रखें।
गैजेट्स का करें इस्तेमाल -
कई बार हम अपने कुछ गैजेट्स को महीनों तक इस्तेमाल नहीं करते हैं। अच्छा होगा कि आप मानसून सीजन में ऐसा न करें। दरअसल गैजेट्स को मानसून के दौरान इस्तेमाल न करने पर इसमें नमी आने का खतरा हो सकता है। किसी भी गैजेट के लिए नमी किसी दुश्मन से कम नहीं होती है। ऐसे में गैजेट्स को घर के किसी कोने में महीनों तक के लिए न छोड़ें।
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