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रायपुर। इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट (आईआईएम) रायपुर में फैकल्टी की नियुक्ति के बिना ही मैनेजमेंट की पढ़ाई शुरू हो गई है। आईआईएम में 42 पदों में से 15 खाली हैं। देशभर में बिजनेस और मैनेजमेंट पढ़ाने के लिए केंद्र सरकार की ओर से संस्थान तो खोले गए, लेकिन इनमें प्राध्यापकों की भर्ती करना बड़ी चुनौती है।
::/introtext::खुद जिम्मेदार स्वीकारते हैं कि सही उम्मीदवार नहीं मिलने के कारण फैकल्टी नियुक्त नहीं हो पा रहे हैं। आईआईएम में 10 स्टूडेंट के पीछे एक फुल टाइम फैकल्टी का रेशियो निर्धारित है, जिसे पूरा नहीं किया जा रहा है।
आईआईएम में असिस्टेंट प्रोफेसर के लिए न्यूनतम क्वालीफिकेशन नेट उत्तीर्ण होना चाहिए। जो युवा मैनेजमेंट में पीएचडी कर चुके हैं वे भी यहां पढ़ाने के लिए पात्र हैं, लेकिन पीएचडीधारक ज्यादातर युवा कार्पोरेट सेक्टर में जॉब करना अधिक पसंद कर रहे हैं।
सभी आईआईएम में पद खाली
संस्थान खाली पद
आईआईएम रायपुर 15
आईआईएम में इतने विद्यार्थी
रायपुर के आईआईएम में 210 विद्यार्थी पढ़ाई कर रहे हैं। आईआईएम को पिछले साल 369.08 लाख रुपये बजट आवंटित किया गया था, जिसमें 349.22 लाख रुपये व्यय किया गया। आईआईएम का नया भवन बन चुका है। सितम्बर तक इसे शिफ्ट करने की योजना बनाई गई है।
इतनी मिलती है सैलरी
आईआईएम में फैकल्टी को 1.2 से 2.8 लाख रुपये प्रति माह तक सैलरी मिलती है। शिक्षण को आकर्षक बनाने के लिए कुछ आईआईएम रिसर्च पर ग्रांट, आर्टिकल प्रकाशित होने पर वित्तीय प्रोत्साहन देते हैं। युवा पीएचडी धारक शिक्षण के बजाय इंडस्ट्री रिसर्च को अधिक पसंद करते हैं, क्योंकि उन्हें इसके लिए ज्यादा सेलरी की पेशकश की जाती है।
::/fulltext::रायपुर। छत्तीसगढ़ में उच्च शिक्षा संस्थान की गुणवत्ता की पोल नेशनल एक्रेडिटेशन एंड एसेसमेंट काउंसिल (नैक) की ग्रेडिंग में खुल रही है। राज्य में ए प्लस प्लस ग्रेड के उच्च शिक्षण संस्थान तो दूर, ए प्लस का भी कोई संस्थान नहीं है। प्रदेश में 450 से अधिक कॉलेज और 20 विवि के बाद भी महज 88 कॉलेज और तीन विवि की ग्रेडिंग हो पाई है।
::/introtext::विशेषज्ञों के मुताबिक राज्य के कॉलेजों में एक दशक से अधिक पुराने सिलेबस से बीए, बीकॉम, बीएससी आदि की पढ़ाई हो रही है है। नैक से ग्रेडिंग कराने के लिए कोर्स का अपडेट होना भी अनिवार्य शर्त है। इसके बावजूद पिछले सालों में उच्च शिक्षा विभाग ने सिलेबस बदलने की जहमत नहीं दिखाई। उच्च शिक्षा के आयुक्त बसव एस राजू का कहना है कि अब स्नातक स्तर पर सिलेबस बदलने की कवायद की जा रही है।
साल 2005 में हुआ था आंशिक संशोधन
साल 2005 में स्नातक स्तर पर सिलेबस में बदलाव की कोशिश की गई थी, लेकिन सिर्फ चेप्टर की हेराफेरी करके विशेषज्ञों ने इतिश्री समझ ली थी। आज मार्केट के हिसाब से जॉब ओरिएंटेड सिलेबस नहीं होने से कॉलेजों को न ही बेहतर ग्रेड मिल पा रहा है न ही केंद्र सरकार के यूनिवर्सिटी ग्रांट कमिशन यानी यूजीसी से बेहतर फंडिंग हो पा रही है। लिहाजा उच्च शिक्षा का स्तर लगातार कमजोर हो रहा है।
सिर्फ सात संस्थान को मिल पाया ए ग्रेड
राज्य में अभी तक सिर्फ सात संस्थान को ए ग्रेड मिला है। इनमें पंडित रविशंकर शुक्ल विवि, इंदिरा कला संगीत विवि, गवर्नमेंट ई राघवेद्र राव पोस्ट गे्रजुएट साइंस कॉलेज (ऑटोनॉमस) बिलासपुर, सीएमडी कॉलेज बिलासपुर, बिलासा कन्या स्नातकोत्तर कॉलेज बिलासपुर, विश्वनाथ यादव तामस्कर पीजी कॉलेज (साइंस कॉलेज) और एक अन्य इंस्ट्टीयूट शामिल है।
रायपुर। देश 72वां स्वतंत्रता दिवस मनाने जा रहा है। स्वतंत्रता का मतलब सिर्फ देश की आजादी नहीं, बल्कि दीनता के बोध से आजादी भी है। देखने-सुनने में असमर्थ छत्तीसगढ़ की दिव्यांग वृद्धा टेटकी बाई देवांगन देश के लिए रोल मॉडल बन गई हैं। दीनता और असमर्थता के बोध से स्वतंत्र होकर टेटकी ने एक प्रेरक उदाहरण प्रस्तुत कर दिखाया है। ताकि न बनें दूसरों पर बोझ बेमेतरा जिले की नवागढ़ पंचायत के तोरा गांव की 72 वर्षीय टेटकी बाई बेहद गरीब होने के साथ ही दिव्यांग भी हैं। देख-सुन नहीं सकतीं, लेकिन निराश्रित-विधवा पेंशन की राशि से पाई-पाई जोड़कर अपनी झोपड़ी के बगल में ही शौचालय बनवा डाला, ताकि दूसरों पर बोझ न बनें।
::/introtext::मजदूरी भी करनी पड़ी
24 वर्षीय नाती मालिकराम ही एकमात्र सहारा है, जो मेहनत-मजदूरी कर घर चलाता है। ऐसे में शौचालय का खर्च वहन करना मुश्किल था। टेटकी बाई बताती हैं कि वर्ष 2011 में गरीबी रेखा सर्वेक्षण सूची में उनका नाम नहीं आया। इस कारण शौचालय बनाने के लिए शासन से एक पैसे की भी सहायता राशि नहीं मिल पाई। इसके बाद उन्होंने निराश्रित व विधवा पेंशन की राशि में से कुछ रकम जमा करनी शुरू की। पाईपाई जोड़कर अंतत: शौचालय बनवाने लगीं तो रकम कम पड़ गई। ऐसे में नाती के साथ मिलकर स्वयं मजदूरी की तब कहीं जाकर शौचालय तैयार करने लायक रुपए जुट सके।
भूखे पेट रहना पड़ा
टेटकी बाई अपनी स्वर्गवासी बेटी बबली के पुत्र मालिकराम के साथ आज भी तंगहाली में ही जी रही हैं। बबली भी दृष्टिबाधित थी, जिसने 18 साल पहले दुनिया छोड़ दी। मजदूरी कर रहा मालिकराम बताता है कि शौचालय बनवाने के लिए रुपए जमा करने के दौरान कई दिन खाने में सब्जी नहीं बन पाती थी। बहुत हाथ बटोरकर चलना पड़ा, कभी-कभी केवल सरकारी चावल उबालकर ही पेट भर लेते थे। गरीबी के कारण पढ़ नहीं सके। आज भी मजदूरी न करें तो खाना न बने। संतोष है कि नानी को अब शौच आदि के लिए किसी पर आश्रित नहीं रहना पड़ता है।
नहीं मिल सका था योजना का लाभ
आर्थिक सर्वेक्षण में खामी के चलते पात्रता बावजूद टेटकी बाई को स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) के तहत योजना का लाभ नहीं मिल सका था। इस बीच, उनकी फरियाद वंचित ग्रामीणों के हक के लिए सक्रिय स्वयंसेवी संस्था जनसुनवाई फाउंडेशन तक पहुंची। फाउंडेशन के राज्य समन्वयक संजय कुमार मिश्रा बताते हैं, तब तक टेटकी कामचलाऊ शौचालय बनवा चुकी थीं।
संस्था ने उन्हें गांव वालों की उपस्थिति में सम्मानित किया तो पूरे क्षेत्र में इसकी गजब प्रतिक्रिया हुई। लोगों ने भी घरों में शौचालय बनवाने शुरू कर दिए। संस्था द्वारा की गई पैरवी के बाद टेटकी को प्रधानमंत्री ग्रामीण आवास योजना का लाभ मिल सका। संजय बताते हैं, अब टेटकी का पक्का मकान भी तैयार हो गया है, लेकिन 2011 की आर्थिक सर्वे सूची में खामी के चलते कई गरीब परिवार वंचित हैं, बावजूद इसके कई गांव ओडीएफ घोषित कर दिए गए हैं।
शासन ने स्वच्छता दूत के रूप में टेटकी बाई का चयन किया और 15 अगस्त 2017 को लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने भी बेमेतरा आकर टेटकी बाई को सम्मानित किया। टेटकी बाई को पूरा गांव अम्मा कहकर बुलाता है। गांव की देवमती, सतरूपा व फेकन कहती हैं कि अम्मा ने शौचालय बनाकर पूरे गांव की आंखें खोल दीं।
कतना दिन माई लोगन जाही बाहिर...
टेटकी बाई छत्तीसगढ़ी बोली में कहती हैं, माई लोगन कतना दिन बाहिर जाही। बहु-बेटी के इज्जत बर सबो झन ला सोचना चही। शौचालय अब्बड़ जरूरी हे। एकर से गांव मा सफई घलो रही। बीमारी नई होही...।
::/fulltext::रायपुर (वीएनएस)। राज्य निर्वाचन कार्यालय के मार्गनिर्देशन में शनिवार को कलेक्टर परिसर रेडक्रास सभाकक्ष में स्वीप कार्यक्रम के तहत जिला लोक शिक्षा समिति रायपुर की ओर से दिव्यांगजन नवीन व भावी मतदाताओं के लिए ’विशेष चुनावी पाठशाला’ का प्रेरक आयोजन किया गया।
छत्तीसगढ़ के मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी सुब्रत साहू ने मुक बधिर दिव्यांग युवाओें को सांकेतिक भाषा ईन्टरप्रिटर की सहायता से जानकारी देते हुए कहा कि जिनका वोटर आई.डी. कार्ड नहीं बना वह फार्म 6 भरकर मतदाता सूची में अपना नाम दर्ज करा सकते हैं। इसके साथ दिव्यांगता का प्रमाण पत्र भी लगा सकते। यह ऑनलाइन www.nvsp.in (NVSP Service Portal) में भी दर्ज करायी जा सकती है। उन्होंने कहा कि बूथवार दिव्यांगजनों की संख्या के अनुसार रैम, व्हील चेयर आदि की व्यवस्था की जाएगी। इसके अतिरिक्त दिव्यांगजनों को वोट के समय उनकी सहायता के लिए एनएसएस, एनसीसी, स्काउड गाइड से कोई एक सहयोगी बूथ के बाहर मौजूद रहेगा और दिव्यांगता प्रमाण पत्र दिखाने पर उन्हें लाइन से अलग सीधे वोट देने का अवसर दिया जाएगा। सुब्रत साहू ने कहा कि ’हर मतदान जरूरी है’ इसलिए सभी को अपने मताधिकार का प्रयोग करना चाहिए। इस अवसर पर उन्होेंने परेशानियां और समस्याओं की भी जानकारी प्राप्त की और उनका समाधान भी सुझाया।
कलेक्टर एवं जिला निर्वाचन अधिकारी ओ.पी. चौधरी ने कहा कि भारत एक लोकतांत्रिक देश है और जनतंत्रोें में चुनाव सबसे महत्वपूर्ण जरिया है जिससे आप मनचाही सरकार चुनते है। कोई भी मतदाता मतदान से वंचित न रहे हमारा यह प्रयास है।स्वीप के प्रभारी एवं ए.सी.ओ. डॉ. के.आर. सिंह ने कहा कि निर्वाचन कार्यालय की यह मनसा है कि कोई मतदाता न छूटे इसलिए न सभी दिव्यांगजन जो 01 जनवरी 2018 की स्थिति में 18 वर्ष पूर्ण हो चुके हैं वे पहचान पत्र, निवास पहचान पत्र के साथ फार्म 6 भरकर जमा करें और मतदान की प्रक्रिया में शामिल हो। जिन दिव्यांगजनों को चुनावी प्रक्रिया से संबंधित कोई जानकारी या सहयोग की आवश्यकता होगी तो वे सीधे उनसे संपर्क कर सकते हैं। उनकी हर संभव सहायता की जाएगी।
विधिक सलाहकार सौरभ चौधरी ने भी संविधान और लोकतंत्र से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी सांकेतिक भाषा ईन्टर प्रिटर के माध्यम से दी। इस अवसर पर उप जिला निर्वाचन अधिकारी राजीव, जिला लोक शिक्षा समिति रायपुर के जिला परियोजना अधिकारी डॉ. संजय गुहे के अलावा जन सामर्थ कल्याण समिति, संकल्प सांस्कृतिक समिति, आर्यन फाउंडेशन का भी विशेष योगदान रहा कार्यशाला में सांकेतिक ईन्टर प्रिंटर के रूप में सुजीत शिशुपाल और राकेश सिंह ठाकुर ने अहम योगदान दिया। मास्टर ट्रेनर चुन्नीलाल शर्मा और डॉ. कामिनी बावनकर ने भी चुनावी पाठशाला के संबंध में जानकारी प्रदान की।
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