Sunday, 22 December 2024

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शिशु को दिलाना है डकार तो इन easy स्टेप्स को करें follow.......

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माता पिता के लिए बच्चे ईश्वर का दिया हुआ सबसे अनमोल तोहफा होते हैं। उनके जन्म के बाद उनकी किलकारियों से घर का पूरा वातावरण खुशनुमा बन जाता है। उनकी छोटी छोटी हरकतें इतनी प्यारी होती हैं जिसे देख सभी का मन प्रफुल्लित हो उठता है। लेकिन केवल माँ बनना ही काफी नहीं होता अपने शिशु की सही देखभाल करना भी बेहद ज़रूरी होता है ताकि वह स्वस्थ रहें।

उनकी त्वचा इतनी नाज़ुक होती है कि अगर सही तरीके से ध्यान न दिया जाए तो कई बार उनके शरीर पर दाने निकल आते हैं या फिर उनकी त्वचा लाल होने लगती है जो कई बार उनके लिए परेशानी का कारण बन जाती है। ठीक इसी प्रकार बच्चों को गोद में लेने का भी सही तरीका मालूम होना चाहिए। गलत तरीके से बच्चों को गोद में उठाने से उनकी हड्डियों और मांसपेशियों पर दबाव पड़ता है जो किसी भी तरह से उनके लिए ठीक नहीं होता। इतना ही नहीं बच्चे को स्तनपान कराना भी आसान काम नहीं होता। दूध पिलाने के बाद बच्चे को डकार दिलाना भी बहुत ज़रूरी होता है ताकि उसे अपच न हो। बच्चे के डकार लेने के बाद माँ भी राहत की सांस लेती है लेकिन बच्चे को डकार दिलाने के भी कुछ सही तरीके होते हैं।

इसके अलावा बच्चा जब डकार लेता है तो उसके पीछे एक उद्देश्य होता है जिसके बारे में कई माता पिता को जानकारी नहीं होती। छोटे छोटे डकार का मतलब होता है कि दूध पीते वक़्त बच्चे ने अतिरिक्त हवा निगल ली होती है वह डकार की मदद से बाहर निकल गयी है, इससे बच्चे को आराम भी मिलता है। डकार लेने से बच्चे की पाचन शक्ति अच्छी होती है साथ ही उसके पेट में और भोजन के लिए जगह भी बनती है। बच्चे को दिन भर में हर छोटे छोटे आहार के बाद डकार ज़रूर दिलवाएं। यह बच्चे के लिए बेहद लाभदायक होता है। ख़ास तौर पर उन बच्चों के लिए जो दूध पीने के फौरन बाद उल्टी कर देते हैं और जिनमें एसिड संबंधित रोग के लक्षण होते हैं।

 हालांकि यह ज़रूरी नहीं कि आपका बच्चा डकार लेगा ही। कई बच्चे बहुत डकार लेते हैं तो वहीं कुछ बच्चे बहुत मुश्किल से डकार ले पाते हैं तो कुछ बच्चे तो बिल्कुल ही नहीं लेते। इसके लिए आपको डकार दिलाने के सही तरीकों के बारे में जानकारी होनी चाहिए ताकि आप अपने बच्चे को स्वस्थ रख सकें। तो आइए जानते हैं बच्चे को डकार दिलाने के सही तरीके के बारे में।

नरम मुलायम तौलिये का इस्तेमाल करें

सबसे पहले आप कोई नरम कपड़ा या तौलिये से अपना कन्धा या फिर अपनी गोद को ढ़क लें। यह आप पर निर्भर करता है कि आप उसे कैसे डकार दिलाना चाहते हैं कंधे पर या फिर गोद में। कपड़े का इस्तेमाल इसलिए किया जाता है ताकि अगर डकार लेते वक़्त बच्चे के मुँह से थोड़ी बहुत उल्टी निकल आए तो ऐसे में आपके कपड़े ख़राब न हो।

बच्चे को अपनी गोद में आराम महसूस कराएं

दूध पिलाने के तुरंत बाद बच्चे को ज़्यादा हिलाना डुलाना नहीं चाहिए क्योंकि कई बार ऐसी परिस्थिति में बच्चा उल्टी करने लगता है। इसलिए थोड़ी देर के लिए उसे अपनी गोद में आराम से लेटे रहने दें। फिर बड़े ही प्यार से उसे अपने कंधे के बल लेटा दे। ध्यान रहे बच्चे की ठोड़ी आपके कंधे पर होनी चाहिए और उसका पेट नहीं दबना चाहिए। अब धीरे धीरे हल्के हाथों से उसकी पीठ को ऊपर से नीचे की ओर सहलाते जाइये। ऐसा आप एक जगह बैठकर या फिर चलते चलते भी कर सकते हैं।

बच्चे को गोद में लेटा कर

कंधे के अलावा आप बच्चे को अपनी गोद में उल्टा लेटाकर भी डकार दिलवा सकते हैं। इसके लिए आप उसे उल्टा लेटाकर हल्के हाथों से उसकी पीठ रगड़े या फिर थपथपाएं। डकार दिलाने का यह तरीका आपको सबसे कठिन लगेगा लेकिन आप परेशान न हों क्योंकि अभ्यास करते करते आप धीरे धीरे इसमें माहिर हो जाएंगे।

बच्चे को 2 बार डकार दिलवाएं

मां का दूध पीने वाले बच्चों के मुकाबले बोतल से दूध पीने वाले बच्चे अतिरिक्त हवा निगल लेते हैं। ऐसे में उनके पेट में गैस बनना आम बात है। इसके लिए ज़रूरी होता है कि ऐसे बच्चों को कम से कम दो बार डकार दिलाया जाए एक दूध पीने से पहले और दूध पीने के बाद क्योंकि अगर दूध पीते वक़्त बच्चा ज़्यादा हवा निगल लेगा तो वह पर्याप्त मात्रा में दूध का सेवन नहीं कर पाएगा। साथ ही वह उलझन भरा भी महसूस करेगा। स्तनपान करते वक़्त यदि आपको लगे कि आपका बच्चा थोड़ी परेशानी में है तो फौरन उसे डकार दिलवाएं, हो सकता है वह गैस की वजह से दिक्कत महसूस कर रहा हो। बोतल से दूध पीने वाले बच्चों को दूध पीने के दौरान थोड़ी थोड़ी देर में डकार दिलाना ज़रूरी होता है। स्तनपान कराने वाली माताओं को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि यदि उनका बच्चा दूध पीते हुए रोने लगे या फिर उलझन महसूस करे तो फ़ौरन अपने दूसरे स्तन से उसे दूध पिलाएं।

दूध पीते पीते यदि आपका बच्चा सोने लगे तो आप डकार को लेकर ज़्यादा चिंतित न हों। 4 से 6 महीने के बाद आपका बच्चा अतिरिक्त हवा निगलना कम कर देता है इसलिए हमेशा बच्चे के हावभाव और उसकी आवश्यकता अनुसार ही उसे डकार दिलवाएं।

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35 की उम्र में, यूं बढ़ाएं 'नॉर्मल डिलीवरी' के चांस......


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लेट शादी करना, फिर काम में व्यस्त हो जाना या फिर सेहत से जुड़ी परेशानी जैसे कारणों के चलते इन दिनों मां बनने की उम्र बढ़कर 35 वर्ष तक पहुंच चुकी है। ऐसे में इन दिनों नॉर्मल डिलीवरी के चांस कम हो कर सी सेक्शन डिलीवरी की संभावना बहुत ज़्यादा हो चुकी है। फिर भी अधिकतर मामलों में यही देखने को मिलता है कि महिलाएं सी सेक्शन के मुकाबाले नॉर्मल डिलीवरी को ही तवज्जो दे रही है, खासतौर पर वो महिलाएं जो इसके फायदों को समझती है। दूसरी तरफ, कुछ महिलाएं सी-सेक्शन का चयन करती हैं क्योंकि उन्हें प्रसव से डर लगता है। हालांकि, प्रसव के दौरान खुद को फिर से प्राकृतिक जन्म के लिए तैयार करना महत्वपूर्ण और बहुत कठिन काम है जो कि अकसर कई महिलाएं नहीं कर पाती हैं। हालांकि 35 वर्ष से अधिक उम्र के महिलाओं को प्राकृतिक प्रसव के लिए खुद को तैयार करने के लिए थोड़ा और प्रयास करने की आवश्यकता होती है। क्योंकि इस उम्र में महिलाओं का मेटाबॉलिज्म काम होने लगता है, जिसकी वजह से वज़न आसानी से बढ़ने लगता है। जबकि वहीं दूसरी ओर इस उम्र में हार्मोनल परिवर्तन होते हैं, जिसकी वजह से जलन, क्रोध और चिंता होती है। ऐसे में नॉर्मल डिलीवरी के ज़रिए स्वस्थ बच्चे को जन्म देने के लिए ज़रूरी है कि आप अपनी लाइफस्टाइल में कुछ परिर्वतन करें।

हमेशा रहें तैयार

सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि गर्भधारण की संभावना महिलाओं में उम्र के साथ भी कम होती रहती है। इसलिए, 35 वर्ष से ऊपर की महिलाओं के लिए पूर्व-गर्भधारण स्तर पर प्रसव के लिए तैयारी शुरू होनी चाहिए। जैसे कि यदि आपका वज़न ज्यादा है तो गर्भावस्था के रूप में कुछ वज़न आपको कम करना होगा, क्योंकि अत्यधिक वज़न बढ़ने से गर्भावस्था के मधुमेह या गर्भावस्था के दौरान उच्च रक्तचाप जैसी जटिलताओं का सामना करना पड़ सकता है।

डाइट हो हैल्दी

19 जून मंगलवार का दिन कैसा रहेगा आपके लिए, जानने के लिए पढ़ें अपना दैनिक राशिफल रात में आपके बच्चे को सोने नहीं देती खांसी, तो ये हैं 5 रामबाण इलाज चेहरे के ओपन पोर्स से गंदगी हटाने के लिए सस्‍ते और आसान उपाय Featured Posts जहां तक हो सके, कोशिश करें कि स्वस्थ आहार ही खाएं। ऐसा करने के लिए आप चाहें तो खाने में सलाद, फल, प्रोटीन भी शामिल कर सकती हैं। साथ ही साथ अपने डॉक्टर से बातचीत कर, विशेष रूप से फोलिक एसिड और कैल्शियम को भी अपनी डाइट प्लान में जगह दें। साथ ही बच्चे की योजना बनाने से पहले धूम्रपान और शराब भी छोड़ दें। जब एक बार आपकी जीवनशैली तय हो जाए तो, इसी हेल्दी डाइट को जारी रखें।

गर्भावस्था के समय

गर्भावस्था में व्यायाम करें, लेकिन केवल प्रसव विशेषज्ञ के परामर्श के बाद ही। उनके मार्गदर्शन में एक संतुलित डाइट को फॉलों करें और अपने वज़न बढ़ाने का ट्रैक रखें (गर्भावस्था में अचानक वज़न बढ़ने से बचना चाहिए)। 35 वर्ष से ऊपर की महिलाओं में भी मांसपेशियों से संबंधित दर्द होता है। एक्सरसाइज़ के दौरान चोटों से बचें, साथ ही अपने जोड़ों और मांसपेशियों को मज़बूत करने के लिए अच्छी तरह से व्यायाम करें।

कुछ कारगार टिप्स

• प्राकृतिक प्रसव के लिए अच्छी सहनशक्ति बहुत महत्वपूर्ण है और इसे बनाएं रखने के लिए व्यायाम ही सबसे सही आॅप्शन है।

• किसी भी अंतिम मिनट की जटिलता या बच्चे के स्वास्थ्य से जुड़े किसी भी तरह की अनहोनी से बचने के लिए डॉक्टर द्वारा समझाए प्लान और जांचों का पालन करें ताकि सिजेरियन डिलीवरी सी-सेक्शन से बच सकें।

• अपने पति व नवजात विशेषज्ञ के साथ मिलकर प्रसव के लिए तैयारी करें।

• पूरे नौ महिनों के लिए खुद को शांत रखें, बॉडी को रिलेक्स रखें। साथ ही साथ शरीर को नॉर्मल डिलीवरी के लिए तैयार करते रहें।

• अपने शारीरिक ढांचे का पूरा ख्याल रखें, क्योंकि नौ महीनों में बच्चे की ग्रोथ के साथ आपके शरीर में भी बदलाव आते हैं। जैसे कि बढ़ते बेबी बम्प के कारण पूरा ज़ोर आपकी रीड की हड्डी पर पड़ने लगता है, ऐसे में आपकी चाल या फिर उठने बैठने का तरीका बदल सकता है। • तीसरे तिमाही से वॉक करना प्राकृतिक प्रसव की तैयारी के लिए अच्छा होता है। हर रोज़ 30 मिनट की वॉक अच्छी होती है। आप चाहे बीच बीच में गैप भी ले सकते है।

• यदि आप एक कामकाजी महिला हैं, तो हर घंटे के गैप में छोटी छोटी वॉक करें, क्योंकि लंबे समय तक बैठे रहने से शरीर में ब्लड सर्कुलेशन कम हो जाता है। साथ ही साथ आप चाहें तो पैरों को ऊपर रखने के लिए डेस्क के नीचे एक स्टूल रख कर उस पर पैर आराम से रखें। यह पैरों में सूजन को कम करने में मदद करता है।

• गर्भावस्था में उच्च रक्तचाप और गर्भावस्था के मधुमेह को रोकने के लिए अत्यधिक नमक और मीठे के सेवन से बचें। दोनों मामलों में प्राकृतिक प्रसव होने की संभावना कम है।

• अच्छी तरह से हाइड्रेटेड रहने के लिए बहुत सारा पानी पीएं।

• अपने शरीर में अच्छे विटामिन डी के स्तर को बनाए रखने के लिए रोज़ाना 30 मिनट तक अच्छे सूरज की रोशनी में बैठें, इससे आपकी हड्डियां और हड्डियों के जोड़ मजबूत हो जाएंगे। सभी उपरोक्त बिंदुओं का पालन करें, लेकिन यह भी याद रखें कि हर गर्भावस्था अलग होती है। साथ ही, ध्यान रखें कि गर्भावस्था में सी-सेक्शन की उच्च संभावना ही बनी रहती है। गर्भावस्था के दौरान स्वस्थ और फिट बने रहने के साथ ही जटिलताओं की संभावनाओं को कम करने के लिए प्रयास करें। इससे न केवल प्राकृतिक प्रसव होने की संभावना बढ़ेगी, बल्कि इस दौरान होने वाले लेबर पैन को कम करने में भी मदद मिलेगी।

 



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डिलिवरी के बाद ऐसे करें वजाइना की देखरेख, कम होगा इन्फेक्शन का खतरा.....

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बच्चे के जन्म के बाद भावनात्मक बदलाव आने के साथ ही शरीर में भी बहुत से परिवर्तन पहली बार होते हैं। इन बदलावों को नज़रअंदाज़ करना लम्बे समय तक शरीर में जटिलताओं को बढ़ावा देना है। खासतौर पर नॉर्मल डिलिवेरी के बाद, शरीर को खास देखरेख की ज़रूरत पड़ती है। बच्चे के जन्म के दौरान वजाइना को काफी नुकसान पहुंचता है जिसे ठीक करने और एक बार फिर से प्राकृतिक तौर पर सही होने के लिए उसमें टांके लगाए जाते हैं। ऐसे में आपका उठना, बैठना, चलना, यहां तक कि आपके छिकने पर भी आपको दर्द महसूस हो सकता है। इसलिए टांके लगाने के बाद बहुत ज़रूरी है कि आप वजाइना की साफ सफाई का सम्पूर्ण ध्यान रखें ताकि किसी भी तरह के इंफेक्शन से बचा जा सके। वजाइना डिस्चार्ज, खासकर खून के निकलने पर वजाइना इंफेक्शन के चांस बढ़ जाते हैं और अगर एक बार इंफेक्शन हो जाए तो आपके शरीर के लिए परेशानियां निरतर बढ़ती है। ऐसे में सही ढंग से साफ सफाई रखना ही सबसे अच्छा आॅप्शन है, ताकि आप आराम से अपने मातृव को महसूस करें और बच्चे के साथ खास पल बिता सकें।

हमेशा करे सफाई:

कोशिश करें कि वजाइना की हमेशा सही ढंग से पूरी सफाई करें। सेनेटरी पैड्स को सही वक्त पर बदलते रहें क्योंकि यही एक सही तरीका है, जिससे आप बच्चे के पैदा होने के बाद होने वाले इंफेक्शन से बच सकते हैं। साथ ही उस हिस्से को गुनगुने पानी से भी साफ करें, ताकि किसी भी तरह की सूजन और दर्द से राहत मिल सके।

पैड्स का करे इस्तेमाल:

डिलिवरी के बाद करीबन 2 हफ्ते तक आपको ब्लीडिंग महसूस हो सकती है। ऐसे में किसी भी तरह के टेम्पोन्स का इस्तेमाल करने के बजाए सेनेटरी पैड्स का इस्तेमाल करें। इस समय टेम्पोन्स के इस्तेमाल से वजाइना में इंफेक्शन का खतरा ज़्यादा बढ़ सकता है। 

आईस पैक:

अगर आपको कभी वजाइना में दर्द या सूजन महसूस हो तो आप बर्फ का सेक कर सकते हैं। इसके लिए 15-20 मिनिट के लिए बर्फ से वजाइना व उसके आसपास के एरिया में अच्छे से सेक करें। साथ ही ध्यान रहे कि बर्फ को किसी पतले कपड़े में लपेट कर ही इसका इस्तेमाल करें।

एन्टीसेपटिक का इस्तेमाल:

हर डॉक्टर डिलिवरी के बाद सुझाव देता है कि टांकों पर एन्टीसेपटिक ही लगाकर उन्हें अच्छे से धोएं क्योंकि इससे हर तरह के इंफेक्शन से आसानी से छुटकारा पाया जा सकता है। इसके लिए पहले एन्टीसेपिटक लोशन को पानी में घोल लें, फिर वजाइना और टांको पर अच्छे से लगाकर धो लें।

पेल्विक फ्लोर एक्सरसाइज:

एक बार जब आपको पूर्ण विश्वास हो जाए कि आपके टांके बिल्कुल सही हो चुके हैं तो आप पेल्विक फ्लोर एक्सरसाइज शुरू कर सकते हैं। ऐसा करने से वजाइना में रक्त का प्रवाह फिर से सही प्रारूप में दौड़ने लगेगा। साथ ही डिलिवरी के बाद वजाइना में किसी भी तरह के इंफेक्शन से बचने का यह सबसे अच्छा तरीका है।

सही तरीके से साफ करना:

सुबह-सुबह फ्रेश हो जाने के बाद, किसी भी तरह के किटाणु हटाने के लिए ज़रूरी है कि वजाइना की अच्छे से सफाई की जाए। खासतौर पर बच्चे के जन्म के बाद ज़्यादा ध्यान देने की ज़रूरत है।


 

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