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चेहरे की त्वचा के रोम छिद्र बताते हैं कि आपकी त्वचा कितनी स्वस्थ है। चेहरे के रोम छिद्र उम्र के साथ बड़े होते जाते हैं क्योंकि उम्र बढ़ने के साथ त्वचा की रौनक कम होती जाती है। ये बड़े खुले रोम छिद्र भद्दे लगते हैं और परेशान करते हैं। यह समस्या आमतौर पर तैलीय त्वचा में अधिक होती है। विशेषज्ञों के अनुसार कई बार गलत मसाज करने से भी रोम-छिद्र गैरजरूरी तौर पर खुल जाते हैं। इन पोर्स को छोटा तो नहीं किया जा सकता लेकिन इसे साफ करके हल्का जरूर किया जा सकता है। अगर आपकी स्किन भी पोर्स में गंदगी जमा होने के कारण खुरदरी और कठोर नजर आती है तो इन घरेलू तरीकों से आप इसे बड़ी आसानी साफ करके चेहरे की स्किन को कोमल और चमकदार बना सकती है।
पोर्स में फसी गंदगी को आराम से निकालने के लिए भाप लेना बहुत बढ़िया ऑप्शन है। इससे स्किन बिल्कुल साफ और ब्राइट दिखने लगेगी। इस उपाय को आप सप्ताह में 2 बार कर सकते हैं। इससे पोर्स साफ होने के साथ ही मुंहासे आने भी कम हो जाएंगे।
यह उपाय पोर्स की सफाई गहराई से साफ करता है। इसके लिए 1 चम्मच बेकिंग सोडा को पानी में साथ मिला कर पेस्ट बना लें। फिर इसे पूरे चेहरे पर 10 मिनट के लिए लगाएं और फिर बाद में गुनगुने पानी से धो लें।
अंडे में प्रोटीन भरपूर मात्रा में होता है, इससे स्किन की खराब परत अपने आप ही हट जाती है और नींबू में मौजूद विटामिन सी चेहरे पर ग्लो लाने में मदद करता है। इसके लिए कटोरी में अंडे का सफेद भाग और नींबू का रंस लेकर अच्छी तरह मिक्स कर लें। फिर इसे चेहरे पर कुछ देर के लिए लगाएं और फिर इसे ठंडे पानी से धो लें।
पोर्स को बंद और साफ करने के लिये रोज वॉटर को चेहरे पर लगाकर उसे साफ करें। यदि आपकी त्वचा तैलीय है तो कत्था लें और इसे गुलाब जल में और यदि त्वचा रूखी है तो दूध में धो लें। ध्यान रहे कि कत्थे की मात्रा मसूर के दाने जितनी ही होनी चाहिए। अब इसमें आधा चम्मच चंदन पाउडर और एक चम्मच लेमन पाउडर मिलाकर चेहरे पर लगाएं।
चीनी पोर्स की सफाई के लिए बहुत बढ़िया उपाय है। इसके लिए चीनी में 1 चम्मच नींबू का रस मिला कर इससे चेहरे पर स्क्रब करें। इसके बाद चेहरे को गुनगुने पानी से धो लें।
ग्रीन से पोर्स की सफाई होने के साथ स्किन टाइट होती है और ऑयली स्किन से राहत मिलती है। इस उपाय के लिए 1 ग्रीन टी पाउडर, 1 अंडा, 2 चम्मच बेसन और थोड़ा-सा गुलाबजल डाल कर पेस्ट तैयार कर लें। इसे चेहरे पर 20 मिनट के लिए लगाएं और बाद में सिंपल पानी से धो लें।
आइस क्यूब चेहरे पर हल्के-हल्के लगाने से चेहरे के खुले पोर्स बंद होने लगते हैं। इससे त्वचा खूबसूरत भी दिखने लगती है। लेकिन ऐसा दिन में केवल 15 से 20 सेकंड ही करें। रात को सोने से पहले आइस क्यूब चेहरे पर लगाना सबसे बेहतर रहता है।
::/fulltext::पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी दिल्ली के एम्स में भर्ती हैं। एम्स का कहना है कि धीरे धीरे उनकी तबीयत ठीक हो रही है।अटल जी को मंगलवार के दिन यूरिन इंफेक्शन की शिकायत के बाद एम्स लाया गया था। इसके अलावा उन्हें किडनी संबंधी समस्या और लोअर रेस्पिरेटरी ट्रेक्ट इंफेक्शन की शिकायत बताई जा रही है। हालांकि अटल बिहारी की हालत में पहले से कई ज्यादा सुधार आया है लेकिन उन्हें कुछ और दिन अस्पताल में रहना पड़ेगा। यूरिन इंफेक्शन फंक्शन या बैक्टीरिया के अलावा ज्यादा देर तक पेशाब रोकने से भी मूत्राशय में बैक्टीरिया पनपने से होता है। यूटीआई का संक्रमण अपर यूरिनरी ट्रैक्ट और लोअर यूरेनरी ट्रैक्ट होता है। बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक यूरिनरी इंफेक्शन (मूत्राशय संक्रमण) सभी आयु वर्ग के लोगों को हो सकता है। महिलाओं में यूआईटी की समस्या सबसे ज्यादा होती है। इसमें ब्लैडर में सूजन हो जाती है। भाशरीर की स्वच्छता पर ध्यान न देना, इम्यूनिटी कमजोर होना, मूत्र मार्ग में सर्जरी और पानी कम पीना ब्लैडर इंफेक्शन या एक्यूट यूटीआई के लिए जिम्मेदार कुछ प्रमुख कारक हैं। एक बार यूरिन इंफेक्शन होने के बाद शरीर में बैक्टीरिया प्रवेश करने के बाद इन जीवाणुओं की संख्या बढ़ने की वजह से भविष्य के लिए काफी घातक साबित हो सकते है। आइए जानते है कि यूरिन इंफेक्शन की वजह से क्या क्या समस्याएं हो सकती है।
इन्टर्स्टिशल सिस्टाइटिस सिंड्रोम
यह एक बेहद खतरनाक ब्लैडर सिंड्रोम है, जिसकी वजह से यूरीन भंडार, जिसे ब्लैडर कहा जाता है, में सूजन होने लगती है। इस दौरान बहुत ही ज्यादा यूरिन आता है। लेकिन यूरिन बहुत ही कम मात्रा में आता है।
ब्लैडर की मांसपेशियां हो सकती है कमजोर
यूरिन को बार-बार रोकने से ब्लैडर की मांसपेशियां बहुत कमजोर भी हो जाती हैं। ऐसा होने पर यूरीन की क्षमता पर भी असर पड़ता है। यूरिन इंफेक्शन के दौरान ब्लैडर की मांसपेशियां बहुत ही कमजोर हो जाती है जिस वजह से आपको कितना ही तेज यूरिन क्यों नहीं आ रहा हो लेकिन आप इसे शरीर से बाहर निकाल नहीं पाते है।
यौन संबंध बनाने से भी
यौन सम्बन्ध के समय साफ सफाई का ध्यान नहीं रखना यूरिन इन्फेक्शन होने का एक बड़ा कारण है। यूरिन में इन्फेक्शन 16 से 35 वर्ष की महिलाओं को अधिक होता है।
गर्भावस्था में होती है ज्यादा समस्या
गर्भावस्था में प्रोजेस्ट्रोन हार्मोन के बढ़ने के कारण मूत्राशय और मूत्र नली की संकुचन की क्षमता कम हो जाती है। इस वजह से मूत्राशय के सही प्रकार से काम न कर पाने के कारण यूरिन इन्फेक्शन हो जाता है।
किडनी की समस्या
रक्त में मौजूद टॉक्सिन को फिल्टर ना कर पाने की वजह से किडनी में समस्याएं होने लगती है, जो आगे चलकर किडनी फेलियर तक पहुंच सकती है। यूरीन में किसी भी तरह का इंफेक्शन सीधे किडनी पर असर डालता है। किडनी फेल हो जाने की वजह से बॉडी में विषैले पदार्थ घुलने लगते हैं और वे यूरीन के साथ भी बाहर नहीं निकल पाते।
यूरिन इंफेक्शन के लक्षण
अगर लगातार आपका यूरिन का रंग गहरा हो रहा है तो इसका मतलब है कि आपका शरीर संक्रमण के घेरे में आ रहा है। यूरिन का रंग डार्क या खूनी होना। यूरिन से बहुत ज्यादा गंदी बदबू आना और इसे रोकना मुश्किल होना। पेट के निचले हिस्से में दर्द और प्राइवेट पार्ट में खुजली होना। यूरिन के दौरान जलन होना।
पुरुषों में यूरिन इंफेक्शन
पुरुषों में डायबिटीज या प्रोस्टेट के बढ़ने के कारण यूरिन में इन्फेक्शन हो सकता है।
इन बातों का ध्यान रखें
पानी का अधिक से अधिक सेवन करें। इसके अलावा नारियल पानी या जूस आदि तरल पदार्थ पीएं। यूरिन को रोक कर न रखें। इससे संक्रमण का खतरा और भी बढ़ सकता है। प्राइवेट पार्ट की सफाई रखें। उसे सूखा रखें और टिशू का इस्तेमाल करें। मसालेदार चीजों का सेवन करने से बचें और कैफीन की अधिक मात्रा न लें। आधा गिलास चावल के पानी में चीनी मिलाकर पीने से यूरिन में होने वाली जलन से छुटकारा मिलता है। बादाम की 5 गिरी में 7 छोटी इलायची और मिसरी डालकर पीस लें। फिर इसे पानी में घोलकर पीएं। इससे दर्द और जलन कम होती है।
मां के दूध में मौजूद अनूठी संरचना छोटे बच्चों को भविष्य में होने वाली फूड अलर्जी से बचाती है। जबकि बाज़ार में मिलने वाले बेबी फूड ये फायदे नहीं देते हैं। बताया गया है कि मां के दूध में मौजूद अवचायक शर्करा, लैक्टोज़ और वसा के बाद तीसरा एक ऐसा ठोस घटक हैं जो शिशु को अलर्जी के ख़तरे से बचाने में कारगर है। हालांकि ये शिशुओं द्वारा पचाने योग्य नहीं होते हैं, लेकिन एक प्रीबायोटिक (एक अनौपचारिक खाद्य घटक जो आंतों में फायदेमंद सूक्ष्मजीवों के विकास को बढ़ावा देता है) के रूप में कार्य करते हैं। जो शिशुओ में अलर्जी रोग का एक प्रमुख प्रभावक माना जाता है।
खास बात ये है कि मां के दूध में एचएमओ की संरचना परिवर्तनीय है। ये स्तनपान का चरण, गर्भावस्था की उम्र, मां का स्वास्थ्य, जातीयता, भौगोलिक स्थान जैसे कारकों से निर्धारित होती है।वही एक साल के शिशु की त्वचा के छिद्र परीक्षणों से पता चला है कि स्तनपान करने वाले शिशुओं ने खाद्य एलर्जी को लेकर कोई संवेदनशीलता प्रदर्शित नहीं की है।
स्तनपान से कई बीमारियों का जोखिम होता है कम
पिछले अध्ययनों से ये भी पता चला है कि स्तनपान कराने वाले शिशुओं को कई तरह की चिकित्सीय स्थितियों, जैसे कि घरघराहट, संक्रमण, अस्थमा और मोटापे का जोखिम कम होता है। ये अध्ययन टीम ने 421 शिशुओं और माताओं से लिए दूध के नमूनों पर किया जिसके बाद ये शोध सामने आया।
वही ये बात भी सामने आई है कि शिशुओ में होने वाली एलर्जी ज़रूरी नहीं कि आगे भी हो लेकिन ये भविष्य के लिए एक चेतावनी भी है।
::/fulltext::गर्भावस्था में अगर दांतों का ख्याल ठीक से ना रखा जाए तो कई गंभीर समस्याएं पैदा हो सकती हैं जैसे दाँतों में सड़न या मसूड़ों से जुड़ी परेशानियां आदि। हार्मोंन में बदलाव की वजह से आपके मसूड़ों में सूजन, जलन या खून आने जैसी समस्याएं उत्पन्न होने लगती हैं। गर्भावस्था के दौरान महिलाओं के शरीर में कई परिवर्तन आते हैं। इस अवस्था में उनके ओरल स्वास्थ्य पर भी असर पड़ता है। ऐसे में अधिकांश औरतें दाँतों और मसूड़े की परेशानी से जूझती हैं। चलिए इस विषय में विस्तार से जानते हैं कि आखिर प्रेगनेंसी के दौरान स्त्री को क्यों अपने दाँतों का ख़ास ख्याल रखना चाहिए और ऐसी कौन सी वजह है जिसके कारण दाँतों से संबंधित शिकायत हो जाती है।
प्रेगनेंसी के दौरान दाँतों से जुड़ी समस्याएं
जिंजिवाइटिस: मसूड़ों से खून आना और इनमें संवेदनशीलता और जलन (जिंजिवाइटिस) होना गर्भावस्था में आम परेशानी है। जिंजिवाइटिस बैक्टीरिया के संक्रमण से होती है।
पेरियोडोनटाइटिस: पेरियोडोनटाइटिस मसूड़ों का बहुत गंभीर संक्रमण होता है। इसमें मसूड़ों में जलन होती है और वो सिकुड़ने लगते हैं। साथ ही इस वजह से दांत भी जल्दी ही टूट कर गिरने लगते है। यह समस्या मुंह में बैक्टीरिया पनपने की वजह से होती है।
मसूड़ों से खून निकलना: जैसा कि हमने आपको बताया गर्भावस्था के दौरान हार्मोन्स के कारण मसूड़ों में सूजन या दर्द की समस्या होती है। इसकी वजह से मसूड़ों से खून भी आना शुरू हो जाता है। मसूड़ों में से खून निकलने की समस्या सख्ती से ब्रश करने के कारण भी हो सकती है या फिर आपमें विटामिन के की कमी हो सकती है।
सूजन: प्रेगनेंसी में मसूड़ों की सूजन महिलाओं के लिए बड़ी परेशानी का कारण बन जाती है। इसका कारण प्लाक या टार्टर, ठीक से ब्रश नहीं करने के कारण दाँतों में फंसे हुए भोजन, हार्मोनल बदलाव या फिर आपकी दवाइंया भी हो सकती हैं।
मुँह से बदबू आना: मुँह से बदबू आने के मुख्य कारण हैं बैक्टीरिया, लार ग्रंथि में समस्या या फिर मुंह सूखना (ज़ेरोस्टोमिया)।
दांत में दर्द: गर्भावस्था में अकसर महिलाओं को मीठा खाने की इच्छा होती है। ज़्यादा मीठा खाने के कारण ही उनके दाँतों में सड़न होने लगती है। इसके कारण दाँतों में दर्द की समस्या उत्पन्न हो जाती है। कई बार सड़न की वजह से दाँत टूटने भी लगते हैं। कैल्शियम और विटामिन डी की कमी से भी प्रेगनेंसी के दौरान आपको दाँतों से जुड़ी परेशानी हो सकती है।
दाँतों की समस्या से निजात पाने के उपाय अगर आप गर्भवती हैं और दाँतों से सम्बंधित परेशानियों से पीड़ित हैं तो इसे झेलना आपके लिए बेहद मुश्किल होता होगा। मुमकिन है ऐसी स्थिति में आप कोई पेन किलर ले लेती होंगी या फिर कोई अन्य दवा, लेकिन गर्भावस्था में कई बार ऐसी दवाइंया हानिकारक साबित हो सकती हैं। बेहतर होगा आप बिना अपने डॉक्टर से सलाह लिए किसी भी दवा का सेवन न करें। तो चलिए जानते हैं ऐसी स्थिति में बिना किसी पेन किलर या एंटीबायोटिक के आप कैसे राहत पा सकती हैं। जी हाँ इसके लिए आपको नीचे दिए गए आसान प्राकृतिक घरेलू उपाय करने होंगे।
अदरक की जड़: अदरक की जड़ों में पाए जाने वाले एंटीबैक्टीरियल गुण दाँतों में छोटे मोटे इन्फेक्शन, लालपन, जलन या घाव जैसी समस्याओं को ठीक करने में मदद करते हैं। इसके लिए सबसे पहले अदरक की जड़ को अच्छे से धोकर सुखा लें फिर करीब आधे इंच का एक मोटा टुकड़ा काट कर उसे छील लें। अब इसे उस जगह पर रख कर चबाएं जहाँ आपको दर्द है। इसमें से निकलने वाले रस को अपनी ज़ुबान से दर्द वाली जगह पर हल्के हल्के लगाएं। करीब पांच मिनट ऐसा करने के बाद उसे थूक दें। आपको ज़रूर आराम मिलेगा।
हल्दी: हल्दी में वो जादुई गुण होते हैं जो चुटकी में आपको दांत की परेशानी से छुटकारा दिला सकता है। एक छोटे चम्मच हल्दी के पाउडर में पानी मिलाकर गाढ़ा पेस्ट तैयार कर लें, फिर रूई की मदद से प्रभावित दांत पर इस पेस्ट को लगाएं। एक अच्छा एंटीसेप्टिक होने के कारण आपको तुरंत राहत मिलेगी। इस पेस्ट का इस्तेमाल आप तब तक करें जब तक आपको पूरी तरह से आराम नहीं मिल जाता।
लौंग: लौंग में पाए जाने वाले एंटीफ्लेमटरी, एंटीसेप्टिक और एनेस्थेटिक गुण दाँत की परेशानी में बहुत ही लाभदायक सिद्ध होते हैं। दो लौंग में आप जैतून का तेल, नारियल तेल या वनस्पति तेल मिलाकर एक मिश्रण तैयार कर लें। फिर रूई से धीरे धीरे दर्द वाले स्थान पर इसे लगाएं। आप इसे दिन में कई बार लगा सकती हैं, जब तक आपको आराम न मिले।
नमक पानी का कुल्ला: नमक पानी से कुल्ला करने से आप के मुख में मौजूद बैक्टीरिया नष्ट हो जाते हैं। आप इस पानी से नियमित रूप से कुल्ला कर सकती हैं तब भी जब आपके दांत में दर्द न हो।
पुदीने वाली चाय: पानी में पुदीने के कुछ पत्ते डालकर उबाल लें फिर थोड़ी देर के लिए उन पत्तों को पानी में ही छोड़ दें। बाद में उसे छान लें। अब इस चाय का इस्तेमाल माउथवाश की तरह करें कुल्ला करने के बाद इस पानी को थूक दें।
प्रेगनेंसी में ऐसे रखें अपने दाँतों को सुरक्षित
अगर आप अपनी प्रेगनेंसी प्लान कर रही हैं तो बेहतर होगा आप अपने डेंटिस्ट से पहले अपने दाँतों की समस्याओं पर चर्चा कर लें ताकि समय रहते वे आपको इसका उचित इलाज बता सकें। 1. प्रेगनेंसी के दौरान नरम बाल वाले ब्रश का इस्तेमाल करें। साथ ही दिन में दो बार फ्लोराइड टूथपेस्ट से ब्रश ज़रूर करें। ऐसे में फ्लॉसिंग भी बहुत ज़रूरी होती है। 2. प्रतिदिन ब्रश करने के बाद भी आप फ्लोराइड वाले माउथवाश से कुल्ला ज़रूर करें। 3. यदि आपको जी मिचलाने या उल्टी की शिकायत होती है तो उल्टी आने के कम से कम एक घंटे बाद आप ब्रश ज़रूर करें। 4. मीठा खाने के बाद किसी अल्कोहल मुक्त माउथवाश से कुल्ला ज़रूर करें। 5. प्रेगनेंसी में कैल्शियम की मात्रा को बढ़ाने से आपकी हड्डियों के साथ साथ आपके दांत भी स्वस्थ रहेंगे। ऐसे में आप मछली, अंडे, चीज़ का सेवन करें। इनमें भारी मात्रा में विटामिन डी पाया जाता है।
प्रेगनेंसी में दांतों से जुड़ी परेशानी कुछ महिलाओं के लिए असहजता का कारण बन जाती है लेकिन अगर आप पहले से ही अपने दांतों का ख्याल रखेंगी तो ऐसी समस्या होने की सम्भावना कम हो जाती है। अगर आपको ऐसी कोई परेशानी होती भी है तो आप कुछ आसान घरेलू उपाय करके इनसे छुटकारा पा सकती हैं या फिर अपने डेंटिस्ट से उचित सलाह ले सकती हैं।