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लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती, कोशिश करने वालों की हार नहीं होती.. ये पंक्तियां देश की पहली दिव्यांग आईएएस अधिकारी प्रांजल पाटिल पर बिल्कुल सटीक बैठती है, जिन्हें आंखों से दिखाई न देने के बावजूद किसी भी असक्षमता को अपने मंजिल के बीच नहीं आने दिया। 2017 में अपने संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षा में 124 वीं रैंक हासिल करने के बाद हाल ही में प्रांजल ने केरल की एरनाकुलम की नई उप कलेक्टर का पदभार सम्भाला है। प्रांजल पाटिल, केरल कैडर की अब तक की पहली नेत्रहीन महिला आईएएस अधिकारी हैं। प्रांजल की ये उपलब्धि देश के अन्य दिव्यांगों के लिए किसी प्रेरणा से कम नहीं है। यहां तक आने में प्रांजल को काफी चुनौतियों का सामना करना पड़ा होगा लेकिन उन्होंने अपनी मंजिल को पाकर दिखा दिया कि हौसलें बुलंद हो तो सभी मंजिलों को पाया जा सकता है।
छह वर्ष में ही खो दी थी आंख
प्रांजल सिर्फ छह साल की थी जब उनके एक सहपाठी ने उनकी एक आंख में पेंसिल मारकर उन्हें घायल कर दिया था। इसके बाद प्रांजल की उस आंख की दृष्टि खराब हो गयी। उस समय डॉक्टर ने उनके माता-पिता को सूचित किया था कि हो सकता है भविष्य में वे अपनी दूसरी आंख की दृष्टि भी खो दें। और बदकिस्मती से डॉक्टर की कही बात सच हुई, कुछ समय बाद प्रांजल की दोनों आंखों की दृष्टि चली गई। पर उनके माता-पिता ने कभी भी उनकी नेत्रहीनता को उनकी शिक्षा के बीच नहीं आने दिया। उन्होंने प्रांजल को मुंबई के दादर में नेत्रहीनों के लिए श्रीमती कमला मेहता स्कूल में भेजा। प्रांजल ने 10वीं और 12वीं की परीक्षा भी बहुत अच्छे अंकों से उत्तीर्ण की और 12वीं में कला संकाय में प्रथम स्थान प्राप्त किया।
रेलवे ने कर दिया था नौकरी देने से इंकार
प्रांजल पाटिल ने साल 2016 में अपने पहले ही प्रयास में संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षा में 733वीं रैंक हासिल की थी। प्रांजल को उस समय भारतीय रेलवे लेखा सेवा (आईआरएएस) में नौकरी आवंटित की गई थी। ट्रेनिंग के समय रेलवे मंत्रालय ने उन्हें नौकरी देने से इनकार कर दिया। रेलवे मंत्रालय ने प्रांजल की सौ फीसदी नेत्रहीनता को कमी का आधार बनाया था। इसके बाद 2017 के यूपीएससी परीक्षा पास की और 124वीं रैंक हासिल करके एरनाकुलम की नई उप कलेक्टर है।
सही कंटेंट की उपलब्धता ही असल चुनौती
व्यक्ति जब खुद से हार जाता है, तो वो दिव्यांग न होते हुए भी दिव्यांग हो जाता है.' ये कहना है 2017 में यूपीएससी परीक्षा में 124वीं रैंक हासिल करने वाली प्रांजल पाटिल का। एग्जाम की चुनौतियों के बारे में प्रांजल ने बताया कि ये सिर्फ मेरे लिए ही नहीं, हर किसी के लिए चुनौतीपूर्ण होता है।उन्होंने कहा कि परीक्षा की तैयारी के लिए सही कंटेंट और उसकी उपलब्धता ही असल चुनौती होती है। उन्होंने कहा कि मेरे लिए मेरा पेपर लिखने वाला एक भरोसेमंद लेखक ढूंढ़ना भी किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं थी।
मलयालम सीखना चुनौती
प्रांजल ने बताया कि उप कलेक्टर बनने के बनने के बाद अब उनका लक्ष्य है कि उन्हें कम से कम समय में कई मलयालम शब्दों को सीखना है। सिविल सेवा के उम्मीदवारों के लिए उन्होंने कहा कि सभी को खुद में विश्वास रखना चाहिए। प्रांजल ने कहा कि किसी भी चुनौती का सामना करने के बाद ही अच्छे परिणाम मिलते है इसलिए किसी भी तरह के चुनौती से न घबराएं। प्रांजल का कहना है कि सफलता मिलने में समय लग सकता है, लेकिन हमें इस बीच हार नहीं माननी चाहिए। धैर्य रखना ही सबसे बड़ी परीक्षा है।
पति का योगदान
कुछ सालों पहले प्रांजल की शादी हुई थी, तब प्रांजल के पति एलबी पाटिल ने एक ही शर्त रखी थी कि वह पढ़ाई नहीं छोड़ेंगी। प्रांजल का कहना है कि उनकी कामयाबी के पीछे उनके माता पिता के अलावा उनके पति का बड़ा योगदान है, जिन्होंने हर कदम पर उनका सहयोग दिया।
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दुनिया में कोई भी तनाव मुक्त नहीं है और तनावपूर्ण समय में, हर कोई दूसरे व्यक्ति पर दोष डालता है। रिश्ते भी जब तनावपूर्ण दौर से गुज़रते हैं तो हमने लोगों को एक-दूसरे को दोषी ठहराते हुए देखा है। लेकिन कोई खुद से नहीं पूछता कि गलती उनकी है या नहीं। अगर आपको लगता है कि आप और आपके पार्टनर का रिश्ता भी मुश्किल वक्त से गुजर रहा है, तो आपको यह समझना होगा कि इसके लिये केवल अपने पार्टनर पर दोष डालना गलत है, आपको खुद को भी देखना होगा कि आप रिश्ते में कहां खड़े हैं। रिलेशनशिप में अपने योगदान का मूल्यांकन करना आवश्यक है। दुनिया में कोई भी तनाव मुक्त नहीं है और तनावपूर्ण समय में, हर कोई दूसरे व्यक्ति पर दोष डालता है। रिश्ते भी जब तनावपूर्ण दौर से गुज़रते हैं तो हमने लोगों को एक-दूसरे को दोषी ठहराते हुए देखा है। लेकिन कोई खुद से नहीं पूछता कि गलती उनकी है या नहीं। अगर आपको लगता है कि आप और आपके पार्टनर का रिश्ता भी मुश्किल वक्त से गुजर रहा है, तो आपको यह समझना होगा कि इसके लिये केवल अपने पार्टनर पर दोष डालना गलत है, आपको खुद को भी देखना होगा कि आप रिश्ते में कहां खड़े हैं। रिलेशनशिप में अपने योगदान का मूल्यांकन करना आवश्यक है। तो चलिए उन सवालों को देखते हैं, जिनका जवाब देकर आपको ये समझने में आसानी होगी कि रिश्ते जब मुश्किल घड़ी से गुजरते हैं तो आपका क्या स्टैंड होता है।
1. क्या आप अपना 100% दे रहे हैं?
यह जानने के लिये कि रिश्ते में आप कहां खड़े हैं आपको खुद से ये सवाल करने की ज़रूरत है। आपको यह पता लगाने की ज़रूरत है कि आप अपना 100% दे रहे हैं या नहीं और रिलेशनशिप को मज़बूत बनाने में कहां गलती या कमी हो रही है। अगर आपके रिश्ते में भी परेशानी आ रही है और आपको अभी भी लगता है कि यह आपके साथी की गलती है। लेकिन अब ये खुद से पूछने और जानने का समय है कि बिगड़ते रिश्ते के ज़िम्मेदार कहीं आप खुद तो नहीं है। यह सबसे कठिन सवालों में से एक है। आपको चीज़ों के बारे में सोचना चाहिए और खुद से पूछना चाहिए कि क्या आपने सर्वोत्तम प्रयास किए हैं। हम आलोचना करने और किसी के प्रति राय बना लेने में माहिर हैं इसलिये रिलेशनशिप भी जब मुश्किल वक्त से गुज़रता है तो हम तुरंत अपने पार्टनर को ज़िम्मेदार ठहरा देते हैं और खुद को आंकना भूल जाते हैं। जिंदगी आसान हो सकती है जिस तरह से आप चाहते हैं और यह बुहत मुश्किल भी हो सकती है, यदि आप अपने नकारात्मक पक्ष को स्वीकार कर उसे सकारात्मक बनाने की कोशिश नहीं करते हैं। इसका निर्णय आपके हाथ में ही है।
2. आप अपने साथी में सबसे ज़्यादा क्या पसंद करते हैं?
जब आप रिलेशनशिप में परेशानी का सामना कर रहे हैं तो उन तत्वों पर ध्यान केंद्रित ना करें जो इसे खराब कर रहे हैं बल्कि अपने साथी के सकारात्मक पहलू को समझें। इससे उलझते रिश्ते को सुलझाने में मदद मिलती है। रिश्तों में कई बार उतार-चढ़ाव आते हैं। लेकिन अगर आप इसके बारे में लगातार सोच रहे हैं, तो आपको यह जानना होगा कि सिर्फ सोचने के बजाए आपको अधिक सकारात्मक तरीके से सोचने की ज़रूरत है। साथ ही रिश्ते के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण बनाये रखना चाहिए। खुद से सवाल पूछे कि आपके साथी में वो क्या चीज़ है जो आपको उनके साथ रखती है। हां, ये सच है कि आप अगर देखना चाहें तो हज़ार नकारात्मक चीजें दिख सकती हैं, लेकिन आपको अपने साथी के सकारात्मक पहलू को ढूंढना है, जो आपके रिश्ते को मज़बूत करेगा। सभी इंसान एक जैसे नहीं होते और ना ही पांचों उंगलियां, इसलिये ज़रूरी है कि आप अपने साथी की सकारात्मक पहलू देखें और सराहें। ये आपके रिश्ते को मज़बूत और बेहतर बनाने के लिए काफी होगा।
3. क्या आप रिश्ते में खो रहे हैं?
कभी-कभी हम अकेले महसूस करते हैं और रिश्ते से खुद को कटा हुआ महसूस करते हैं। ऐसा कई लोगों के साथ होता है लेकिन यह रिश्ते के लिए खतरनाक है। अगर आप एक खुशहाल रिश्ते में होने के बावजूद कहीं खोए हुए हैं। अकेला, उदास या खालीपन महसूस करते हैं, तो ऐसा इसलिए है क्योंकि आपने इसके पीछे की वजह कभी खुद से नहीं पूछी। अकेला और खालीपन महसूस करने के कई कारण हो सकते हैं। शायद आप अभी भी अपने अतीत में जी रहे हैं, या आपको किसी बात का डर है जिसकी वजह से आपको ऐसा महसूस हो रहा है। सिर्फ खुद से सवाल पूछने पर ही आपको जवाब मिलेगा।
4. क्या आप खुद से प्यार करते हैं?
जब तक आप खुद से प्यार करना नहीं सीखेंगे, आप अपने पार्टनर की इच्छा को तरजीह नहीं दे सकते। सबसे पहले आपको खुद से प्यार करना होगा यानि आप जैसे हैं, जो हैं खुद को स्वीकार करें और प्यार करें। अपने आप को प्यार नहीं करना रिश्ते में बहुत परेशानी पैदा करता है। आपके और आपके साथी के लिए यह मुश्किल हो जाता है।
5. क्या मैं तुम्हारे बिना रह सकता हूँ?
अपने आप से यह पूछें क्योंकि यह जवाब देने के लिए सबसे आसान और सबसे कठिन सवाल बन गया है। आपको यह जानना होगा कि आप अपने साथी से प्यार करने के मामले में कहां स्टैंड करते हैं। क्या आप वास्तव में उनसे प्यार करते हैं या यह सिर्फ एक रिश्ते का दबाव है जो आपको रिश्ते में बांधे हुए है। क्या आप सच में प्यार में हैं, क्या आप अपने साथी के बिना जी सकते हैं, क्या आप अपने साथी के बिना खुद को खुश रख सकते हैं, अपने पार्टनर से दूर जाना और उससे उबरना आपके लिये कितना मुश्किल होगा। अगर आप अपने साथी से प्यार करते हैं, और आप उनके बिना जीने की कल्पना नहीं कर सकते हैं, तो आप रिश्ते में आई हर कठिनाईयों को दूर करने में सक्षम होंगे, क्योंकि आपके लिये आपके पार्टनर का साथ सबसे ज़रूरी है। साथ ही रिश्ते मे आई हर परेशानियां का सामना कर आप वक्त के साथ रिश्ते को मज़बूत और बेहतर बनाते हैं। ये कुछ ऐसे सवाल हैं जिन्हें आपको खुद से पूछने की ज़रूरत है, जब आपको लगे कि आपके रिश्ते में परेशानी आ रही है। आप इसे बेहतर या बदतर बना सकते हैं। यह सब आप पर निर्भर है। इसके बारे में सोचें और इस ओर ध्यान दें कि रिलेशनशिप ना टूटे। पूरी सच्चाई के साथ खुद इन सवालों का जवाब दें और देखें कि रिश्ते को बेहतर बनाने में आपके ये जवाब कितने काम आते हैं।
इंटिमेसी यानि सेक्स संबंधों से डर लगना सामान्य बात है लेकिन कई लोग इसके पीछे के कारण को समझ ही नहीं पाते हैं लेकिन अगर किसी को इस डर से बाहर निकलने में दिक्कत आती है तो ऐसे में इसका असर उसके रिश्ते पर भी पड़ता है। इंटिमेसी का डर सामान्य तौर पर किसी के करीब जाने पर होता है। इंटिमेसी से जुड़ा ये डर पार्टनर से नहीं बल्कि अपने ही अंदर बैठे एक ऐसे इंसान से होता है जिसे किसी के करीब जाने में घबराहट महसूस होती है। इसमें सबसे बड़ी समस्या ये है कि हमारा पार्टनर हमें सकारात्मक तरीके से देखता है लेकिन हम खुद स्वयं को नकारात्मक तरीके से देखते हैं।
इंटिमेसी के डर के पीछे छिपा कारण
दिल का टूटना
अगर पहले आपका रिश्ता टूट चुका है तो आपको इंटिमेसी से डर लगने लगता है। दिमाग में ऐसे ख्याल आते हैं कि अगर आप किसी के करीब जाएंगें तो फिर से आपका दिल टूट जाएगा। इस वजह से मन में किसी के करीब जाने का डर बैठ जाता है।
कोई रोल मॉडल ना रहा हो
कई बार व्यक्ति अपने बचपन में पैरेंट्स को इंटिमेट होते हुए नहीं देखते हैं और इस वजह से वो इसका मतलब ही नहीं समझ पाते हैं। इस वजह से आगे चलकर इंटिमेसी के प्रति डर बैठ जाता है। किसी के करीब जाने में डर और असहज महसूस होने लगता है।
आत्मविश्वास में कमी
अगर आपको अपने आसपास कुछ अच्छा नहीं लगता या आपमें आत्मविश्वास की कमी है तो आपको इंटिमेट होने से डर लग सकता है। जब कोई खुद को ही स्वीकार नहीं कर पाता तो सामने वाले के प्यार को कैसे अपनाएगा।
सब दिमाग का खेल है
बचपन में किसी कड़वी याद की वजह से भी ऐसा हो सकता है। शिशु अपनी ज़रूरत को रोकर ही बताते हैं। इसके बाद हम अपनी ज़रूरतों को बोलकर व्यक्त कर पाते हैं लेकिन अगर माता-पिता इसके बदले गुस्सा करें तो बच्चे के मन में डर बैठने लगता है। कभी हमारी ज़रूरतें बिल्कुल भी पूरी नहीं होती हैं। खुद की भावनाओं को व्यक्त करना ऐसे में मुश्किल हो जाता है। इस वजह से दिमाग में कड़वी यादें बन जाती हैं जो कि इंटिमेसी के डर का कारण बनती हैं।
प्रेरक बाध्यकारी विकार (Obsessive Compulsive Disorders)
इस विकार की वजह से भी इंटिमेसी से डर लगने लगता है। कुछ लोगों को लगता है कि रिलेशनशिप में तनाव बहुत होता है। इस विकार से ग्रस्त महिलाओं और पुरुषों को रिलेशिनशिप में होने वाली मुश्किलों से डर लगता है। उन्हें लगता है कि रिलेशनशिप में आने पर उनकी फीलिंग्स उनके कंट्रोल में नहीं रहेंगी। भावनाओं के साथ-साथ शारीरिक संबंध बनाने में भी इन्हें डर लगता है।
इंटिमेसी से डर के पीछे ये 5 कारण होते हैं। अगर आपके भी पार्टनर को ऐसा कोई डर है तो उनसे खुलकर बात करें। उन्हें बताएं कि उनमें आपको क्या दिख रहा है और उन्हें बहुत प्यार से समझाएं। अगर आप सच में रोमांटिक लाइफ चाहते हैं तो कपल थेरेपी के लिए भी उन्हें ले जा सकते हैं। ऐसे महिला और पुरुष ठीक हो सकते हैं लेकिन इसके लिए उन्हें खुद से ईमानदार होना पड़ेगा और अपनी रोमांटिक लाइफ को खुशनुमा बनाने के लिए कोशिश करनी होगी।
::/fulltext::हर महिला के लिए माहवारी एक जैविक और प्राकृतिक क्रिया है। लेकिन क्या पूरे समाज का भी ये ही सोचना है? उत्तर है नहीं। भारत में आज भी माहवारी शब्द को शर्म और गंदगी से जोड़कर देखा जाता है। शहर हो या गांव इस विषय पर हर जगह एक चुप्पी का माहौल है। आज भी बदलते दौर में माहवारी शब्द हमारे जीवन के शब्दकोष का एक सहज हिस्सा नहीं बन पाया हैं। महिला के उन पांच दिनों से जुड़ी उसकी असहजता और तकलीफ पर कहीं कोई चर्चा नहीं होती। उत्तर प्रदेश के बुन्देल खंड के गांव मसोरा कला में महिलाओं के लिए घरों में कोई निजी स्थान नहाने और शौच के लिए नहीं है,पुरुष तो खुले में नहाते ही हैं लेकिन महिलाओं के पास भी कोई निजी आड़ नहीं होती है इसलिए महिलाएं खुले में ही कपड़े पहनकर नहाने के लिए मजबूर हैं। इसका एक सबसे बड़ा कारण महिलाओं की निजी आड़ की अहमियत को नज़रंदाज़ करना है। सबसे ज्यादा दिक्कत माहवारी के दौरान होती है। निजी आड़ नहीं होने के कारण महिलाएं एक ही कपड़ा दिन-भर इस्तेमाल करतीं हैं और उसे बदलने के लिए दिन छिप जाने का इंतज़ार करतीं हैं। माहवारी के कपड़े को शर्म के कारण महिलाएं खुले में नहीं धो पातीं हैं वो दिन ढल जाने के बाद तालाब या कुआं के पास उन्हें धोती हैं। अंधेरे में धुलने के कारण माहवारी की कतरनें ठीक से साफ़ भी नहीं हो पातीं हैं। धूप में न सूखने के कारण ये संक्रमण का कारण भी बनतीं हैं। गांवों में अधिकतर महिलाएं सफ़ेद पानी की शिकायत से ग्रस्त हैं। भारत के कई गांवों में 'गूँज' संस्था महिलाओं की बुनियादी जरूरतों के बारे मे संवाद कर उनकी मासिक धर्म से जुडी बुनियादी जरूरतों पर काम कर रहा है।
काम के दौरान संस्था ने महसूस किया है की हमारे गांवों में माहवारी को लेकर महिलाओं की जरूरतों पर कभी भी कोई संवाद नहीं हुआ है माहवारी के दौरान ये आड़ और भी जरुरी हो जाती है। महिलाओं के पास कोई निजी आड़ न होने के कारण महिलायें खुद को साफ़ सुथरा नहीं रख पातीं है। जिसका नकारात्मक असर इनके स्वास्थ पर पड़ता है 'गूँज' के क्लॉथ फॉर वर्क (काम के बदले कपड़े) अभियान के तहत गांव वालों ने स्वयं महिलाओं के लिए प्लास्टिक की शीट और बांस की बल्लियों से स्नान-घर व शौचालय बनाए हैं। संस्था का कहना है कि तस्वीर बदलने के लिए संवाद करना बेहद जरुरी है। ये कहानी हमारे बीच किसी भी गांव की हो सकती है।लेकिन माहवारी पर संवाद करके हम ऐसा होने से रोक सकते हैं।
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