Sunday, 22 December 2024

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क्‍या आप जानते है लड़कियों के पेंटी में छोटी पॉकेट क्‍यों होती है?.....

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क्या आपने कभी अपने पैंटी में क्रॉच की जगह अजीब रूप से बने हुए छोटे जेबों को देखा है? देखा होगा तो सोचा तो जरुर होगा कि इन पॉकेट है पेंटी के आंतरिक तरफ क्‍या काम है। अगर इन पॉकेट को देखकर आप असमंजस में पड़ जाते है तो आपको बता देते है कि आप अकेले नहीं हैं जिन्‍हें इन पॉकेट के होने के बारे में नहीं मालूम नही है। आइए जानते है कि यहां क्‍यों इन पॉकेट में ये जेब बने होते है।

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स्वास्थ्य मानकों के अनुसार है, पेंटी के आंतरिक परत एक विशेष नरम ऊतक से बनाई जाती है। इसी तरह पुरुष अंडरवियर में भी एक ऐसी ही विशेष नरम टिश्‍यू से बनाई जाती है

हालांकि, महिलाओं के पेंटीज को इस तरह से बनाया जाता है कि यदि पॉकेट के दोनों तरफ से अंत में सिल दिया जाए, तो यह आपको असुविधाजनक बना देगा। इसलिए इन पोकेट को एक तरफ से छोड़ दिया जाता है। इसलिए नतीजतन, वहां एक छोटी थैली सी बन जाती है। हालांकि, कई ब्रांड इन जेब के बिना पैंटी का डिज़ाइन भी करते हैं, लेकिन सिलाई लाइन को एक-दूसरे से दूर रखते हुए ताकि आपको असहज महसूस न हो।

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भूल कर भी अपने बच्चों की तुलना दूसरों से न करें....

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जिस प्रकार पांचों उंगलियां बराबर नहीं होती ठीक उसी प्रकार हर बच्चा अपने आप में अलग और ख़ास होता है। हर माता पिता को इस बात का ध्यान रखना चाहिए ताकि उनके बच्चे में आत्मविश्वास की कमी ना हो और उसके जीवन में खुशियां ही खुशियां रहे।

कई माता पिता अपने बच्चों की तुलना अकसर दूसरे बच्चों से करने लगते हैं जो की बिल्कुल गलत होता है। कई अध्ययनों से इस बात का खुलासा हुआ है कि ऐसे में आपके बच्चे का मनोबल गिरता है और वह अपने आप को कमज़ोर समझने लगता है। इसके अलावा इन अध्ययनों से इस बात की भी पुष्टि हुई है कि इस तरह की बातों से बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर भी बुरा असर पड़ता है जिसका ठीक होना बाद में बेहद मुश्किल हो जाता है। कहते हैं बच्चे मिट्टी की तरह होते हैं आप उन्हें जैसा आकार देंगे वो वैसे ही बनेंगे इसलिए माता पिता होने के नाते कुछ बातें ऐसी होती हैं जिनका ध्यान रखना आपके लिए बेहद ज़रूरी होता है ताकि आप अपने बच्चे की परवरिश समझदारी से कर सकें। इस लेख में हम इसी विषय पर चर्चा करेंगे कि माता पिता होने के नाते आपको अपने बच्चे का आत्मविश्वास बढ़ाना चाहिए, न की दूसरे बच्चों से उनकी तुलना करके उन्हें मानसिक तौर पर कमज़ोर करना चाहिए।

कैसे करते हैं माता पिता दूसरों से अपने बच्चों की तुलना

अकसर हमने माता पिता को बच्चों से यह कहते सुना होगा कि "तुम खुद को देखो और उस बच्चे को देखो, कितना अच्छा है वह", ख़ास तौर पर ऐसे वाक्य वो पेरेंट्स कहते हैं जिनके बच्चे शरारती होते हैं। वे उनकी बदमाशियों से तंग आ जाते हैं और अपने गुस्से पर नियंत्रण नहीं कर पाते। हालांकि वे अपने गुस्से में इस बात का अंदाज़ा भी नहीं लगा सकते हैं कि उनके कहे हुए ये सारे शब्द किस प्रकार मानसिक रूप से उनके बच्चों को प्रभावित कर सकते हैं। बच्चे हो या बड़े किसी की भी तुलना किसी से नहीं की जानी चाहिए क्योंकि इससे मनुष्य का आत्मविश्वास कमज़ोर होता है। ख़ास तौर पर बच्चे इस तरह की आलोचनाओं का सामना करने में सक्षम नहीं होते इसलिए इसका नकारात्मक प्रभाव हमेशा के लिए उनके जीवन पर पड़ जाता है। इसके अलावा स्वयं के माता पिता के मुख से अपनी ऐसी आलोचना सुनना कि दूसरे बच्चे उनसे बेहतर हैं उनके लिए बेहद दुखद होता है। माता पिता होने के नाते आपको अपने बच्चों को सही और गलत के बीच फर्क समझाना चाहिए। साथ ही उन्हें उनकी गलतियों का एहसास दिलाना चाहिए लेकिन इसके लिए यह ज़रूरी नहीं कि आप हर बार उनकी तुलना दूसरों से करें।

बच्चों का सही मार्ग दर्शन करें

आज के इस बदलते हुए समय में आपका बच्चा चारों तरफ से प्रतिस्पर्धा से घिरा हुआ है चाहे वो स्कूल हो या फिर मामूली सा वह पार्क जहां वो खेलने जाता है। बेहतर होगा हम अपने बच्चे को इस तरह की प्रतिस्पर्धा से दूर रखें कम से कम घर पर तो आप ऐसा कर सकते हैं। ऐसे में उनके अंदर किसी भी प्रकार की हीन भावना जागृत नहीं होगी और उन्हें सही और गलत की भी पहचान हो जाएगी। इसके अलावा आप उन्हें यह सिखा सकते हैं कि किस तरह वे अपनी कमज़ोरियों को दूर करके वो खुद को मज़बूत बना सकते हैं। अगर आप हर बार अपने बच्चों की तुलना दूसरों से करते रहेंगे तो ज़ाहिर सी बात है कि वे हीन भावना का शिकार हो जाएंगे जिसके बाद आपके लिए चीज़ों को संभालना मुश्किल हो सकता है।

इसलिए नहीं करनी चाहिए दूसरों से अपने बच्चों की तुलना

हर माता पिता अपने बच्चे के लिए सबसे बेस्ट ही करना चाहते हैं लेकिन अगर आप उन्हें अच्छी तरह से नहीं समझेंगे या फिर उनकी तुलना दूसरों से करेंगे तो ऐसे में आपका बच्चा कभी आगे नही बढ़ पाएगा। यह कुछ मुख्य कारण है कि आखिर क्यों आपको अपने बच्चे की तुलना दूसरे बच्चों से नहीं करनी चाहिए।

 

1. जब हमसे यह कहा जाता है कि सामने वाला हमसे किसी चीज़ में बेहतर है तो ऐसी परिस्थिति में हम अपनी खुद की काबिलियत पर शक करने लगते हैं और धीरे धीरे कमज़ोर पड़ने लगते हैं। यही बात बच्चों पर भी लागू होती है।

2. अगर आप अपने बच्चे की तुलना अपने किसी पड़ोसी के बच्चे, उसके स्कूल के किसी बच्चे या फिर अपने किसी रिश्तेदार के बच्चे से करेंगे तो ऐसे में उसके मन में जलन जैसी भावना पैदा हो जाएगी जो आगे चलकर क्रोध और घृणा का रूप ले लेगी।

3. तुलना बच्चों की सकारात्मक ऊर्जा को भी नष्ट कर देती है। वे नयी नयी चीज़ों को सीखने में और चुनौतियों का सामना करने में डरने लगते हैं क्योंकि उन्हें हारने का डर सताने लगता है। उनके मन में नकारात्मकता पूरे तरीके से घर कर लेती है।

4. ध्यान रहे कि अपने बच्चे की तुलना करके आप उसे न केवल मानसिक रूप से कमज़ोर कर रहे हैं बल्कि वह आपसे भी दूर हो रहा है। कहीं न कहीं इससे आपके रिश्ते पर भी बुरा असर पड़ता है।

5. अपने बच्चे की तुलना दूसरों से करके आप उन पर एक तरह से दबाव डालने लगते हैं। उन्हें लगने लगता है कि वे आपकी उम्मीदों पर खरा नहीं उतर पा रहे हैं।

इस बात में कोई दो राय नहीं कि बच्चों को अच्छी परवरिश देना बहुत मुश्किल होता है। इसके लिए माता पिता को बहुत से त्याग और बलिदान करने पड़ते हैं। कोई भी माता पिता जान बूझकर अपने बच्चों के साथ गलत नहीं कर सकते। वे हमेशा उनका भला ही चाहते हैं फिर भी कई बार अनजाने में ही सही वे कुछ ऐसा कर जाते हैं जो किसी भी तरह से उनके बच्चों के लिए सही नहीं होता। बच्चों को सही रास्ता दिखाना माता पिता का काम होता है क्योंकि उनका घर ही उनका सबसे पहला स्कूल माना जाता है इसलिए अभिभावक होने के नाते उनके अंदर अच्छे या बुरे गुण लाना आप पर ही निर्भर करता है। बेहतर जीवन के लिए सकारात्मक रहना बहुत ज़रूरी होता है इसलिए हमेशा अपने बच्चों को उजले पक्ष को देखना सीखाएं और आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करें। साथ ही उन्हें इस बात का भी एहसास दिलाएं कि वे आपके लिए कितने खास हैं।

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शादी के बाद बढ़ता है मोटापा, जानें 5 कारण...

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ज्यादातर लोग मोटे क्यों हो जाते हैं? बहुत से लोगों के लिए यह बात एक राज की तरह है। अगर आपके दिमाग में भी यही सवाल है, कि लोग शादी के बाद मोटे क्यों हो जाते हैं, तो जानिए वजह - 2011 में ओहियो स्टेट में की गई एक स्टडी में पाया गया कि शादी के बाद लोगों के शारीरिक वजन में 9 से 10 किलो ग्राम तक का अंतर आ जाता है।

इसका प्रभाव सबसे ज्यादा महिलाओं पर पड़ता है और वे तंदुरुस्त हो जाती हैं। शोधकर्ताओं ने पाया कि जो लोग शादी के बाद जितना ज्यादा खुश होते हैं उनके मोटे होने की उतनी ज्यादा संभावनाएं होती हैं। वहीं 2012 में प्रकाशित की गई एक स्टडी में बताया गया है कि ऐसे जोड़े जिनके शादी के दो साल से ज्यादा हो जाते हैं उनके किसी अविवाहित व्यक्ति के मुकाबले शारीरिक वजन बढ़ने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं। यूएसए टुडे के मुताबिक, शादीशुदा स्त्री अगर 20 साल की है तो अगले पांच सालों में उसका वजन 11 किलो ग्राम के लगभग बढ़ने की संभावनाएं होती हैं। वहीं इसी उम्र के पुरुष का वजन 13 किलोग्राम तक बढ़ने की संभावनाएं होती हैं। 
 
1. एक दूसरे की पसंद का पड़ता है असर : जब किसी की शादी हो जाती है तो वह अक्सर बाहर डिनर व ब्रंच के लिए जाना शुरू कर देते हैं। साथ ही छोटी-छोटी बातों को लेकर परवाह करना भी कम हो जाती है। इस दौरान बाहर खाना एक सबसे महत्वपूर्ण चीज बन जाती है। और लोग अपनी पसंद और अपने पार्टनर की पसंद का खूब ख्याल रखने लगते हैं और अत्याधिक सुख के कारण मोटे होने लगते हैं।
 
2. शादी के बाद किचन के खाने का मजा : शादी के बाद हमारी भारतीय नारियां पाक कला में खूब हाथ आजमाती हैं ताकि वे अपने जीवनसाथी और घर के बाकी सदस्यों को खुश कर सकें। जब तरह-तरह के व्यंजन रोज बनाए और खाए जाते हैं तो वजन बढ़ना तो जाहिर है।वजन बढ़ने का संबंध इससे कतई नहीं है कि हैप्पी मैरिज होगी तभी दोनों कपल वजन बढ़ाएंगे, बल्कि शादीशुदा लोग खाने में सांत्वना प्राप्त करने का खूब ध्यान देते हैं। फलस्वरूप वजन बढ़ता है। 
 
3. दबाव नहीं होता : वजन बढ़ने का सबसे बड़ा कारण होता है कि जीवनसाथी पाने का दबाव कम हो जाता है। इसलिए लोग परिवर्तन के लिए तैयार रहते हैं और साथ ही उनके पास एक बहाना होता कि अब तो मैं शादीशुदा हूं। 2013 में हेल्थ साइकॉलजी में प्रकाशित हुए आर्टिकल में बताया गया जो जोड़े अपनी शादी से खुश, संतुष्ट और सुरक्षित महसूस करते हैं उनमें वजन बढ़ने की संभावनाएं ज्यादा होती हैं। क्योंकि उनमें किसी को आकर्षित करने का कोई दबाव नहीं होता।
 
4. लापरवाही : एडीलेट, ऑस्ट्रेलिया की फ्लिंडर्स विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने पाया कि जो महिलाएं शादी के पहले ज्यादा डाइट करती हैं वे शादी के बाद लापरवाह हो जाती हैं जिससे उनका वजन ज्यादा बढ़ जाता है। शादी के बाद महिलाएं सोच लेती हैं कि अब उन्हें किसी को इंप्रेस करने की आवश्कता नहीं है। इसके कारण उनका वजन बढ़ता है।
 
5. प्रेग्नेंसी का होना : जब मोटापे की बात आती है तो प्रेग्नेंसी दोहरे बाण के रूप में कार्य करती है। प्रेग्नेंसी के समय महिलाओं का बहुत अधिक खयाल रखा जाता है( जो मां की कोख में पल रहे बच्चे के लिए जरूरी भी है) जिसके कारण प्रेंग्नेंट मां 1 साल तक कोई भी काम नहीं करती। जिसके फलस्वरूप वजन द्रुत गति से बढ़ता है।
 
 
 
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नवजात शिशु में ऐसे पहचानें पीलिया के लक्षण.....

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नवजात शिशुओं में पीलिया की समस्या एक आम बात है और ये माता पिता के लिए चिंता का विषय बन जाता है। बेहतर होगा आप इस बात को भलीभांति जान लें कि अधिकांश बच्चों को जन्म के बाद इस समस्या से गुज़रना पड़ता है। हालांकि अगर इसका इलाज सही समय पर और ठीक तरह से किया जाए तो यह बीमारी पूरी तरीके से ठीक हो जाती है और आपका बच्चा एकदम स्वस्थ हो जाता है। अपने इस लेख में आज हम नवजात शिशुओं में पीलिया की समस्या पर चर्चा करेंगे जिसमें इसके लक्षण, कारण और इससे जुड़ी अन्य कई महत्वपूर्ण जानकारियां आपको देंगे। तो आइए विस्तार से जानते हैं इस बीमारी के बारे में।

नवजात बच्चों में पीलिया

पीलिया की स्थिति में शरीर और आँखों का रंग पीला पड़ने लगता है। इसकी शुरुआत बच्चे के जन्म के कुछ दिन बाद होने लगती है। कई अध्ययनों के अनुसार अधिकतर बच्चों को जन्म के कुछ हफ्ते बात हल्के स्तर पर पीलिया हो जाता है। हालांकि समय से पहले जन्म लेने वाले बच्चों में इस बीमारी का खतरा ज़्यादा रहता है। अगर वे पीलिया की चपेट में आ गए तो ये जल्दी उनका पीछा नहीं छोड़ती है। याद रखिये अगर नवजात शिशु में बिलीरुबिन (bilirubin) का स्तर बहुत अधिक है तो इसके कारण उसे अन्य कई बीमारियां हो सकती हैं जैसे ब्रेन डैमेज, बहरापन और सेरेब्रल पाल्सी। सेरेब्रल पाल्सी, बच्चों में होने वाला मस्तिष्क विकार है।

नवजात बच्चों में पीलिया होने के कारण

बड़ों में पीलिया लीवर की समस्या के कारण होता है, वहीं बच्चों में इसका कारण दूसरा होता है। आमतौर पर नवजात शिशु में बिलीरुबिन का स्तर ज़्यादा होता है, क्योंकि उनके शरीर में अतिरिक्त ऑक्सीजन वहन करने वाली लाल रक्त कोशिकाएं होती हैं। बिलिरुबिन एक केमिकल होता है, जो कि शरीर में लाल रक्त कोशिकाओं के सामान्य रूप से टूटने पर बनता है। शरीर से बिलिरुबिन को हटाने का काम लीवर करता है। नवजात शिशु का लीवर अभी पूरी तरह परिपक्व नहीं हुआ होता है इसलिए यह अतिरिक्त बिलिरुबीन का अपचय नहीं कर पाता।

नवजात शिशु में पीलिया को समझना

शारीरिक तौर पर देखें तो पीलिया बच्चों में सामान्य है। इसके लक्षण शिशु के जन्म के कम से कम सात दिन बाद दिखायी देते हैं। सही से स्तनपान कराने से यह बिना उपचार के अपने आप ही ठीक हो जाता है। नवजात बच्चों में जॉन्डिस के अन्य कई कारण हो सकते हैं, जैसे स्तनपान से जुड़ी कोई समस्या, बच्चे और माँ के खून में असामान्यता, इन्फेक्शन या फिर अन्य प्रकार के लिवर और खून से सम्बंधित बीमारी। कई बार बच्चे को पीलिया, अस्पताल से छुट्टी लेकर घर जाने के बाद होती है इसलिए शिशु के जन्म के हफ्ते भर के अंदर ही डॉक्टर उसका नियमित चेकअप कराने की सलाह देते हैं ताकि वे इस बात की जानकारी हासिल कर सकें कि आपका नन्हा शिशु कहीं पीलिया की चपेट में तो नहीं आ गया है। हालांकि एक माता पिता होने के नाते अगर आपको अपने बच्चे में पीलिया का कोई भी लक्षण दिखाई दे तो फौरन अपने डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए।

नवजात बच्चों में पीलिया के लक्षण

पीलिया के लक्षणों में सबसे पहले आंखों और शरीर का रंग धीरे धीरे पीला होने लगता है। आमतौर पर बच्चे के जन्म के दूसरे या चौथे दिन आपको यह लक्षण देखने को मिल सकता है। इस बात की पुष्टि करने के लिए कि आपके नन्हे शिशु को पीलिया है या नहीं आप हल्के से उसकी नाक या फिर माथे को दबाकर देख सकते है दबाने से अगर बच्चे की चमड़ी पीली पड़ जाए तो समझ लीजिये उसे हल्के स्तर पर पीलिया हो गया है। अगर उसे पीलिया नहीं होगा तो दबाने के बाद उसके शरीर का रंग सामान्य रंग से थोड़ा हल्का हो जाएगा। दिन के उजाले में आप ऐसा करके इस बात का पता आसानी से लगा सकते हैं कि आपके बच्चे को पीलिया है या नहीं।

कब संपर्क करें अपने डॉक्टर से

कई अस्पताल बच्चों को डिस्चार्ज करने से पहले उनका अच्छी तरह चेकअप कर लेते हैं। हालांकि यह ज़रूरी नहीं है कि आपके बच्चे को पहले ही यह बीमारी हो जाए, अस्पताल से घर जाने के चार पांच दिन बाद भी आपका शिशु इस बीमारी से प्रभावित हो सकता है। अमेरिकन अकादमी ऑफ पीडियाट्रिक्स के अनुसार अस्पताल में नवजात बच्चे का पीलिया के लिए चेकअप हर 8 से 12 घंटे में होना चाहिए। घर आने के पश्चात भी आपके डॉक्टर आपको बच्चे के रूटीन चेकअप की सलाह देते हैं। आमतौर पर जन्म के तीसरे और सातवें हफ्ते में एहतियात बरतने के लिए कहा जाता है क्योंकि इस दौरान बिलिरुबिन का स्तर बढ़ता है। इसके अलावा पीलिया के कुछ लक्षणों के बारे में भी आपको जानकारी होनी चाहिए ताकि ऐसे में आप फौरन अपने डॉक्टर से सलाह लें। अगर आपको अपने नवजात शिशु में इनमें से एक भी लक्षण आपको दिखाई दे तो तुरंत अपने डॉक्टर के पास जाएं और अपने बच्चे का इलाज करवाएं। 1. अगर बच्चे के शरीर का रंग अधिक पीले पड़ने लगे। 2. अगर बच्चे के पैर, पेट या कंधे पीले पड़ने लगे। 3. जब बच्चों के आंखों का सफेद हिस्सा पीला हो जाए। 4. बच्चे का वज़न न बढ़े। 5. बच्चा सुस्त रहने लगे। 6. बच्चा ज़ोर ज़ोर से रोये। 7. अगर जन्म के तुरंत बाद आपके बच्चे को पीलिया हो गया है और वह तीन हफ़्तों के बाद भी ठीक नहीं हो रहा है तो फौरन अपने डॉक्टर से बच्चे की जांच करवाएं। 8. अगर आपको कुछ असामान्य लक्षण अपने बच्चे में दिखायी दे।

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