Owner/Director : Anita Khare
Contact No. : 9009991052
Sampadak : Shashank Khare
Contact No. : 7987354738
Raipur C.G. 492007
City Office : In Front of Raj Talkies, Block B1, 2nd Floor, Bombey Market GE Road, Raipur C.G. 492001
रायपुर। राजधानी के वरिष्ठ चिकित्सक डॉ0 विनय बांठिया ने लोगों को अगाह किया है कि पीलिया से बचाव के लिए झांड़-फूंक पर बिल्कुल भरोसा नहीं करें। पीलिया एक बीमारी है, जिसका दवाई से ही उपचार किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि खान-पान में सामान्य सावधानियां बरत कर बारिशजन्य बीमारियों से बचा जा सकता है।
डॉ0 बांठिया आज खम्हारडीह में एनपीजी मीडिया गु्रप और नगर निगम के संयुक्त तत्वाधान में पीलिया से बचाव के लिए आयोजित जनजागरण शिविर में बोल रहे थे। उन्होंने विस्तार से मेडिकल कारण बताया कि पीलिया होती क्यों है और इससे कैसे बचा जाए। उन्होंने कहा कि रक्त में बिलिरुबिन की मात्रा बढ़ जाने के कारण इस बीमारी का लक्ष्ण दृष्टिगोचर होने लगता है। इसके तीन महत्वपूर्ण कारण हैं। पहला प्रिहिपेटिक। इसमें रक्त कोशिकाओं के जल्द टूट जाने से बिलिरुबिन की मात्रा बढ़ जाती है। मलेरिया, थैलासिमिया, सिकलसेल एनीमिया समेत अन्य अनुवांषिक कारणों से यह होता है। दूसरा, हिपोटिक या हिपेटोसेलुलर। लीवर कोशिकाओं में को नुकसान या लीवर में इंफेक्शन के कारण या अत्यधिक शराब और नमक का सेवन से यह होता है। तीसरा, पोस्ट हिपेटिक। पित्त नलिका में रुकावट, लीवर में घाव, पित्ताशय में पथरी या दवाइयों के अत्यधिक सेवन का साइड इफेक्ट इसके कारण हैं।
डॉ0 बांठिया ने सिलसिलेवार बताया कि किस तरह पीलिया से बचा जा सकता है। उन्होंने कहा कि सबसे पहले पानी उबाल कर पीएं, भोजन ढंक कर रखें, दूषित आहार और दूषित पानी का सेवन न करें, सड़े-गले फल न खाएं, हाथ साबुन से अच्छी तरह धोएं, खुले में शौच न करें, गर्भवती महिलाओं और छोटे बच्चों का विशेष ध्यान रखें। उन्होंने यह भी कहा कि पीलिया से बचने खासकर बरसात के मौसम में मसालेदार भोजन, नमकीन, अधिक तेल, धी युक्त भोजन, शराब और सिगरेट का सेवन बिल्कुल न करें।
उन्होंने कहा कि पीलिया अगर होता है तो तीन सप्ताह तक पूर्ण विश्राम करें, दवाइयों का नियमित सेवन करें, झाड़-फूंक के चक्कर में ना पड़े, डा0 की सलाह पर दवाइयां लें, रक्त की नियमित जांच कराएं और उचित भोजन लें। खाने में करेले का रस, नींबू, मूली, टमाटर का रस, छांछ, नारियल पानी, गेहूं, अंगूर, किसमिस, बादाम, दाल पानी, ग्लूकोज पाउडर और कम तेल की सब्जी खाना चाहिए।
खमारडीह बस्ती में लोगों को पीलिया से बचाव का टिप्स देने के साथ ही उन्होंने बड़ी संख्या में लोगों के स्वास्थ्य की जांच भी की। इस मौके पर वार्ड के पार्षद राकेश धोतरे समेत बड़ी संख्या में लोग उपस्थित थे। Link :https://youtu.be/f8nHS2AzFuU
::/fulltext::ज्यादात्तर इंडियन रसोईयों में सुबह का नाश्ता पोहा ही होता है। हालांकि बाजार में टेस्टी और हेल्दी ब्रेकफास्ट के नाम पर कई ऑप्शन बाजार में उपलब्ध है। काफी लम्बे समय से पोहा आज भी भारतीयों के ब्रेकफास्ट की लिस्ट में सबसे ऊपर ही रहता है।
डाइटिशियन और हेल्थ एक्सपर्ट का मानना है कि पोहा सबसे सेहतमंद नाश्ता है। पोहे में 76.9 फीसदी कार्बोहाइड्रेट्स और 23.1 फीसदी प्रोटीन होता है। जो कि इसे एक सेहतमंद नाश्ता बनाता है, जो आपको सुबह-सुबह ऊर्जा देता है। क्योंकि पोहा को चावलों को पीटकर बनाया जाता है। जिसके कारण ये आसानी से पच जाता है, जिस कारण पेट पर दबाव नहीं रहता और आपको पूरे दिन पेट फुला हुआ महसूस नहीं होता।
आइए जानते है कि कैसे रोजाना ब्रेकफास्ट में पोहा खाने से आपको क्या क्या फायदें है?
वजन कम करने में मदद करता है
पूरे देश में पोहा सबके फेवरेट नाश्ते में से एक है। यह अपने आप में एक पूर्ण आहार है। इसमें भारी मात्रा में कार्बोहाइड्रेट्स, आयरन और फाइबर होते हैं। साथ ही पोहे में एंटी ऑक्सीडेंट और जरूरी विटामिन की भी जरूरी मात्रा में होती है। इसे सुबह के नाश्ते के लिए या दिन में किसी भी समय स्नैक की तरह खाया जा सकता है। इसके अलावा इसमें कार्ब्स की मात्रा बहुत कम होती है। साथ ही इसमें इंसुलिन न होने के कारण पोहा वजन कम करने में भी मदद करता है।
हल्का आहार
पोहा बहुत ही हल्का होता है और आमतौर पर कम मात्रा में परोसा जाता है यह हल्के होता है लेकिन इसे खाने से पूरे दिन आप में एनर्जी रहेगी। इसमें प्रचुरू मात्रा में कार्बोहाइड्रेट होता है। यही वजह है यह हमारे पाचन तंत्र को भी ठीक रखता है। पोहा ऐसा ही एक विकल्प है जो आपको दोपहर के भोजन के समय तक एनर्जी देता है।
पचने में आसान
पोहा हल्का होने के कारण आसानी से पच जाता है। यह पोहे के स्वास्थ्य लाभो में से एक है। नाश्ते में पोहे के सेवन से आपको पूरा दिन भारीपन नहीं लगता। इसलिए सुबह नाश्ते में पोहा खाना आपके लिए पाचन तंत्र के लिए बहुत अच्छा होता है।
आयरन से भरपूर
नाश्ते में रूप में पोहा खाने से आयरन की कमी को दूर किया जा सकता है। पोहे को गर्भवती महिलाएं और बच्चे भी अपने आहार में शामिल कर सकते हैं। आयरन एक महत्वपूर्ण मिनरल है जो हीमोग्लोबिन के स्तर को बनाए रखने में अहम भूमिका निभाता है। यह पोहे के पोषण संबंधी लाभों में से एक है।
कार्बोहाइड्रेट से भरपूर
पोहा में सीमित मात्रा में कार्बोहाइड्रेट के लिए अपना प्राथमिक स्रोत बना सकते हैं। पीटा चावल अन्य कार्बोहाइड्रेट विकल्पों की तुलना में स्वस्थ होता है। पूरे दिन ऊर्जा के लिए शरीर में कार्बोहाइड्रेट की जरुरत होती है। इसके अलावा पोहा फाइबर से भी समृद्ध होता है।
पोषक तत्व से भरपूर
पोहे में अनेक प्रकार की सब्जियों को मिलाने के कारण इसमें विटामिन और मिनरल की अधिकता पाई जाती है। आप इसे स्वादिष्ट और प्रोटीन युक्त बनाने के लिए इसमें मूंगफली और अंकुरित दालों को भी मिला सकते हैं। कुछ लोग पोहे को प्रोटीन से भरपूर बनाने के लिए इसमें अंडा भी मिला देते हैं। आप इसे अपने बच्चे के लंच बॉक्स में भी पैक कर सकते हैं।
ग्लूटेन का कम स्तर
पोहा में ग्लूटेन के कम स्तर के कारण, कम ग्लूटेन खाद्य पदार्थों का उपभोग करने वाले डॉक्टर की सलाह से इसे अपने आहार में शामिल कर सकते हैं। पोहा मधुमेह रोगियों द्वारा भी सेवन किया जा सकता है। यह पोहे के स्वास्थ्य लाभ में से एक है।
मधुमेह रोगियों के लिए
खून में शुगर के धीमी गति से बढ़ावा देने के कारण पोहा मधुमेह रोगियों के आदर्श आहार है। एक बार इसके सेवन से आपको लम्बे समय तक भूख नहीं लगती है।
अलग अलग नामों से जाना जाता है
पोहा को पूरे भारत में पोहे को अलग-अलग तरह से बनाया जाता है। जैसे कि कांदा पोहा, दही चूड़ा (असम, बिहार और उड़ीसा में मशहूर), पोहा जलेबी(मध्य प्रदेश में प्रसिद्ध) खड़भुजा पोहा और अन्य। इसको अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग नाम से जाना जाता है। तमिल में इसे अवल, कन्नड़ में अवालक्की और भोजपुरी में चूड़ा कहते हैं। इतना ही नहीं मराठी परंपराओं में भी इसका खासा महत्व हैं।
::/fulltext::कुछ समय पहले एक्टर इरफान खान ने सोशल मीडिया में खुद को कैंसर होने की बात कहकर सभी फैंस को चौंका दिया था। अब बॉलीवुड की एक और एक्ट्रेस ने खुद को कैंसर होने की बात का खुलासा किया है। एक्ट्रेस सोनाली बेंद्रे ने सोशल मीडिया के जरिए फैंस को कैंसर होने की बात का खुलासा किया है। सोनाली ने बताया है कि उन्हें हाई-ग्रेड कैंसर हुआ है और इसके इलाज के लिए वह इन दिनों न्यूयॉर्क में हैं। बुधवार को सोनाली बेंद्रे ने अपने इंस्टाग्राम अकाउंट पर एक पोस्ट लिखकर साफ किया कि कैसे वह इस बीमारी से जूझ रही हैं और इस दौरान उनके दोस्त और परिजन उनका पूरी तरह साथ दे रहे हैं। उन्होंने इस पोस्ट के जरिए अपना दर्द बयां किया है कि वो इस दौरान कैसा महसूस कर रही है। आइए जानते है कि हाईग्रेड कैंसर से जुड़े फैक्ट।
क्या होता है हाई ग्रेड कैंसर
हाई ग्रेड कैंसर में इसके सेल्स तेजी से शरीर में फैलते है। जो कि लो ग्रेड कैंसर सेल्स से कई गुना तेजी से बढ़ते है। जब शरीर में सफेद और लाल रक्त कशिकाओं की संतुलन बिगड़ने और सेल्स का बनना नियंत्रण हो जाता है। तब कैंसर होता है। इस प्रक्रिया को मेटेस्टिक कैंसर भी कहा जाता है। ये स्टेज 4 कैंसर होता है। जिसे भी गुर्दे का लास्ट स्टेज कैंसर होता है उनके पास चार से पांच साल ही जीवित रहने के लिए होते है। मेटेस्टिक कैंसर को प्राइमरी कैंसर भी कहा जा सकता है। उदारण के तौर अगर पर ब्रेस्ट कैंसर गुर्दों में फैल गया है तो उसे मेटेस्टिक ब्रेस्ट कैंसर कहा जाएगा। इस ग्रेड के कैंसर में मरीज को तुंरत इलाज देना जरूरी हो जाता है।
डॉक्टर्स के लिए भी मुश्किल
जिन लोगों में मेटास्टेसिस कैंसर पाया जाता है डॉक्टर के लिए ये पता लगा पाना बेहद मुश्किक होता है कि ये कैंसर आखिर शुरू कहा से हुआ। इलाज में जितनी देरी होगी हालात उतने काबू से बाहर हो जाते हैं। इस ग्रेड के कैंसर में इलाज काफी इंटेसिव यानी कि सघन होता है।
सबसे पहले कहां फैलता है मेटास्टेसिस कैंसर?
ट्यूमर के टूटने के बाद खून के जरिए यह कैंसर पूरे शरीर में फैलकर सबसे पहले हड्डियों को अपना शिकार बनाता है. इसके बाद यह कैंसर फेफड़ों, लिवर और दिमाग में फैलता है. इसके बाद यह ट्यूमर गर्भाशय, मूत्राशय, बड़ी आंत और ब्रेन बोन की तरफ रुख करता है।
इसके लक्षण
हमारी खराब लाइफस्टाइल और खानपान के कारण लोग बहुत बड़ी तादाद में कैंसर के चपेट में आ रहे हैं। अगर कैंसर के लक्षण समय रहते दिखने लगे तो जरूरी उपाय करके इससे बचा जा सकता है। मगर मेटास्टेसिस कैंसर में हमेशा लक्षण दिखाई नहीं देते। जब यह उभरते हैं तो इनकी प्रकृति और फ्रीक्वेंसी मेटास्टेसिस ट्यूमर के साइज और उसकी जगह पर निर्भर करती है। फिर भी जानिए इनके लक्षण-
पेशाब और शौच के समय खून आना।
खून की कमी से एनीमिया होना।
खांसी के दौरान खून आना।
हड्डियों में दर्द मल मूत्र पर नियंत्रण नहीं रहना।
गले में किसी भी प्रकार की गांठ शरीर में नीले दाग पड़ना।
खून में कैल्शियम की मात्रा बढ़ जाना।
::/fulltext::हालांकि मानसून आते ही हर किसी को सुकून सा महसूस होने लगता है। गर्मी से राहत के साथ आसपास का वातावरण भी ठंडक से भर जाता है। जो हमें काफी राहत देता है लेकिन वातावरण में नमीं की मात्रा बढ़ने के कारण इंफेक्शन और पेट से जुड़े रोगों का खतरा भी बढ़ जाता है। खासकर खानपान में सावधानी बरतकर इससे बचा जा सकता है। वहीं इन दिनों कई तरह के इंफेक्शन और फ्लू का खतरा बढ़ जाता है।
मानसून आते ही कई लोग मानसून ट्रिप का प्लान करने लग जाते है लेकिन मानसून ट्रिप बनाने से पहले और कहीं बाहर खाने से पहले जान ले कि मानसून में आपको क्या खाना चाहिए और क्या नहीं? कौनसी चीज खाने से आपको इंफेक्शन हो सकता है और आपको किन चीजों को इस मौसम में खासतौर पर अवॉइड करना चाहिए। तो इस मानसून अगर आप लान्ग ड्राइव पर जाने के मूड में हैं और कहीं दूर चाय और स्नैक्स खाने का मन बना रहे हैं, तो पहले एक नज़र यहां डाल लें, जहां हम बता रहे हैं बारिश के दिनों में किन चीज़ों का अपनी खाने की लिस्ट से दूर रखना चाहिए।
तैलीय पदार्थ न खाएं
मानसून के दौरान, सरसों के तेल, मक्खन या मूंगफली के तेल में बना खाना खाने से बचना चाहिए क्योंकि ये तेल थोड़े भारी होते हैं। इनसे तैयार भोजन को पचने में दिक्कत होती है। पाचनतंत्र को बेहतर रखने के लिए खाने में जैतून का तेल, घी या सूरजमुखी तेल इस्तेमाल करना चाहिए। यह तेल दूसरे तेलों की तुलना में हल्के होते हैं।
ताजी सब्जियां और फल खाएं
अधिक से अधिक सब्जियों और फलों को डाइट में शामिल करें क्योंकि ये आसानी से पच जाते हैं और कई जरूरी विटामिंस और मिनिरल्स पाए जाते हैं। सबसे जरूरी बात है कि इन्हें अच्छे से धोने के बाद ही इस्तेमाल करें ताकि बैक्टीरियल इंफेक्शन का खतरा कम किया जा सके।
सी-फूड
फिश और प्रॉन्स के लिए मानसून का समय ब्रीडिंग का होता है, तो साल के इन दिनों में सी-फूड से पूरी तरह मुंह मोड़ लें। इसके बावजूद भी आपके लिए सी-फूड खाना जरूरी है, तो बिल्कुल ताज़ा खाना ही खाएं, जिसे ज़्यादा देखभाल के साथ अच्छे से पकाया गया हो।
आलू और अरबी न खाएं
आलू, अरबी, जैसी सब्जियां, भिंडी, मटर, फूलगोभी न खाएं, क्योंकि ये आसानी से नहीं पचते हैं और इनसे इंफेक्शन होने का खतरा होता है। इसलिए मानसून में इनका सेवन करने से बचें।
कच्चा सलाद और जूस
बरसात के मौसम में कच्चा सलाद खाने से बचें। कच्चे सलाद में कई तरह के कीड़े होने का डर बना रहता हैं। इसलिए सलाद को स्टीम्ड करके खाएं। इससे सलाद के कीटाणु भी नष्ट हो जाएंगे और ये अधिक स्वास्थ्यवर्धक भी बन जाता है। यहां तक घर पर भी फलों का काटकर ना रखें बल्कि काटने के बाद तुरंत खा लें। इसके अलावा बाजार में बिकने वाले जूस से भी इन्हीं कारणों से परहेज करें।
पत्तेदार सब्जियां
पत्तेदार सब्जियां खाने के महत्व के बारे में सुना होगा। फिर भी इन्हें मानसून के दिनों में खाने से बचना चाहिए। बारिश के दिनों इनमें गंदगी और नमी आ जाती है, जिस कारण इसमें कीटाणु मिलने की संभावना काफी बढ़ जाती है। पालक, पत्ता गोभी, फूल गोभी जैसी सब्जियों को बारिशों में बिल्कुल न खाएं। इनकी जगह करेला, तोरी, घीया और टींडे आदि सब्जियां खाने की लिस्ट में शामिल करें। हर सब्जियों को अच्छे से धोकर खाएं।
कच्चा सलाद न खाएं
बरसात के मौसम में कच्चा सलाद खाने से बचना चाहिए क्योंकि इसमें कीड़े होने का डर बना रहता है। अगर खाना ही हो तो सलाद को स्टीम्ड करके खाएं। इससे सलाद के कीटाणु भी नष्ट हो जाएंगे और ये ज्यादा हेल्दी भी साबित होगा।
डेयरी प्रॉडक्ट देखकर खाएं
बारिश में डेयरी प्रॉडक्ट भी कम से कम खाना चाहिए। इनमें बैक्टीरिया पनपने की ज्यादा सम्भावना रहती हैं। कच्चा दूध भी इस मौसम में पीने से बचना चाहिए। नमी के कारण इसमें बैक्टीरिया अधिक पनपते हैं इस कारण पाचनतंत्र प्रभावित हो सकता है। दूध ले भी रहे हैं तो उबालकर ही पीएं, खासकर ऐसे लोग जिन्हें उल्टी-दस्त की समस्या हुई हो।
खूब पीएं
पानी भले ही बारिश के बाद तापमान कम हो गया हो लेकिन शरीर में पानी की कमी न होने दें। दिनभर में कम से कम 8-10 गिलास पानी जरूर पीएं। इस मौसम में पानी की कमी पूरी करने के लिए फलों का जूस लिया जा सकता है। जो विटामिंस के साथ मिनिरल्स की भी पूर्ति करेंगे।
विटामिन सी खाएं
इस मौसम में हर्बल-टी खास फायदा पहुंचाती है। इसमें मौजूद तत्व शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाते हैं। इसमें चाहें तो अदरक, काली मिर्च और शहद का भी प्रयोग कर सकते हैं। इस मौसम में शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है ऐसे में डाइट करेला, मेथी, नींबू और मौसमी जरूर शामिल करें। इनमें विटामिन-सी अधिक पाया जाता है जो इम्युनिटी बढ़ाते हैं।
::/fulltext::