Wednesday, 12 March 2025

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टीकाकरण कैसे हमें आने वाले घातक संक्रामक रोगों से बचाता है?.....

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शिशु के लिए क्यों है जरूरी?
 
टीकाकरण जिसे वैक्सीनेशन भी कहा जाता है। यह हम सभी के लिए बेहद जरुरी है। खासकर यह तभी लग जाने चाहिए जब हम शिशु होते हैं और हम में से लगभग सभी को हमारे अभिभावकों ने जन्म के बाद ही कई तरह के टीके लगवाए भी हैं। अब यदि आप नए-नए माता-पिता बनने जा रहे हैं या बने हैं तो आपको भी यह जानना बहुत ज़रुरी है कि आप अपने बच्चे को क्यों लगवाएं और शिशु के लिए टीकाकरण क्यों जरूरी
है?
 
आइए, जानें किसे कहते हैं वैक्सीन? 
 
हमारे शरीर में किसी बीमारी के प्रति लड़ने की प्रतिरोधात्मक क्षमता बढ़ाने के लिए जो दवा दी जाती है उसे ही टीका व वैक्सीन कहते हैं। वैक्सीन को किसी भी रूप में हमारे शरीर में भेजा जाता है। हो सकता है कि यह दवा आपको खिलाई जाए, पिलाई जाए या इंजेक्शन के माध्यम से इसे आपके शरिर में डाली जाए।
 
 
वैक्सीन की दवा कैसे काम करती है?

वैसे तो हमारे शरीर में एक इम्यून सिस्टम (प्रतिरक्षण तंत्र) होता है जो किसी भी प्रकार की बिमारी से लड़ता है और हमें उससे बचाता है। कुछ लोगों का यह सिस्टम मजबूत होता है तो कुछ का कमजोर होता है। जब किसी बीमारी वाले जर्म्स हमारे शरीर में प्रवेश कर जाते हैं और हमें बीमार करने लगते हैं, तब हमारा शरीर इन जर्म्स की पहचान कर लेता है कि यह हमें नुकसान पहुंचाने वाले हानिकारक जर्म्स हैं। ऐसे में हमारी बॉडी खुद ब खुद ही इन हानिकारक जर्म्स से लड़ने के लिए एक तरह का प्रोटीन बनाने लगती है जिसे कहते हैं।
 
की दवा में क्या दिया जाता है?
 
टीके के रूप में दी जाने वाली दवा में भविष्य में संभवत: आने वाली बीमारी जैसे हेपेटाइटिस बी, खसरा, टिटनेस, पोलियो व काली खांसी आदि के जीवाणु या विषाणु और जर्म्स जीवित व मृत अवस्था में, लेकिन बहुत ही कम मात्रा में हमारे शरीर में डाल दिए जाते हैं, जिसके बाद हमारी बॉडी स्वत: इनसे लड़ने और हमें बचाने के लिए बनाने लग जाती है और एक बार बनने के बाद यह एंटीबॉडीज हमेशा हमारे शरीर में मौजूद रहती है और जब कभी भी भविष्य में इसी बीमारी जिसका हमने वैक्सीनेशन व करवाए हैं, इसके जर्म्स हमें अटैक करते है तब वैक्सीन के द्वारा तैयार हुए हमारे शरीर में मौजूद एंटीबॉडीज हमें उस घातक बीमारी से बचाती हैं। इसीलिए किसी भी संक्रामक रोग की रोकथाम के लिए टीकाकरण करवाना बहुत जरुरी है।
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अस्पतालों से नहीं उठ रहा मेडिकल वेस्ट, महामारी की आशंका......

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राजधानी में महामारी फैल सकती है, क्योंकि यहां के 122 अस्पतालों का पिछले दो महीने से मेडिकल वेस्ट नहीं उठ रहा है।

रायपुर। मानसून आने पर राजधानी में महामारी फैल सकती है, क्योंकि यहां के 122 अस्पतालों का पिछले दो महीने से मेडिकल वेस्ट नहीं उठ रहा है। राजधानी में एनजीटी के नियमों की खुलेआम धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। राजधानी में इन अस्पतालों का मेडिकल वेस्ट खुले में निगम की डोर टू डोर कचरा उठाने वाली गाड़ियों से ले जाया जा रहा है। खुली गाड़ी में मेडिकल वेस्ट जाने से शहर में बीमारी फैल सकती है, जबकि इसे बंद गाड़ी में ले जाना चाहिए। नईदुनिया की टीम की पड़ताल में यह खुलासा हुआ है। वहीं रायपुर पर्यावरण मंडल ने मेडिकल वेस्ट उठाने वाली कंपनी पर कार्रवाई करने के बजाय अस्पतालों को नोटिस जारी किया है। वहीं सूत्रों की मानें तो मेडिकल वेस्ट उठाने वाली कंपनी अधिक पैसे की मांग कर रही है। इस कारण कंपनी अस्पतालों से मेडिकल वेस्ट नहीं उठा रही है। कंपनी प्रबंधन का कहना है कि जिन अस्पताल प्रबंधन द्वारा रजिस्ट्रेशन कराया है, उन्हीं अस्पतालों का कचरा कलेक्ट किया जा रहा है।

गौरतलब है कि जिले भर में 500 सरकारी, गैर सरकारी हॉस्पिटल और नर्सिंग होम्स हैं जो कि कचरा का निष्पादन का जिम्मा भिलाई की ई-टेक कंपनी को मिला था। रायपुर में प्रतिदिन करीब करीब दो टन तक बायो मेडिकल वेस्ट निकल रहा है। कंपनी का काम बेहतर नहीं था। कंपनी के काम के दौरान रायपुर के सरोना ट्रेचिंग ग्राउंड समेत नालियों और कचरे में आए दिन बायो मेडिकल वेस्ट के फेंकने की शिकायतें आती रही थी । बायो मेडिकल को बाहर फेंकने से संक्रमण ब़ढ़ने का खतरा रहता है। शिकायत के बाद कंपनी को मेडिकल वेस्ट कलेक्ट करने की जिम्मेदारी से मुक्त कर दिया था। रायपुर में एसएमएस वाटर ग्रेस इन्वायरो प्रोटेक्ट प्रालि. को जिम्मेदारी -

मई 2018 के प्रथम सप्ताह से छत्तीसगढ़ पर्यावरण संरक्षण मण्डल के आदेश के मुताबिक मेसर्स एसएमएस वाटर ग्रेस इन्वायरो प्रोटेक्ट प्रालि रायपुर को अब मेडिकल वेस्ट निष्पादन के लिए अधिकृत किया गया है। कंपनी को 75 किलोमीटर के दायरे में स्थापित तकरीबन 500 चिकित्सालयों से उत्पन्न जैव चिकित्सा अपशिष्टों का निष्पादन करना है, लेकिन कंपनी द्वारा रायपुर जिले से सिर्फ 378 निजी एवं शासकीय अस्पतालों का ही मेडिकल वेस्ट उठा रही है। बाकी के 122 अस्पतालों का मेडिकल वेस्ट गीला-सूखा कचरा कलेक्ट करने वाली गाड़ी के साथ खुले में जा रहा है। इससे भविष्य में महामारी फैल सकती है। सही ढंग से कचरे का निष्पादन नहीं -

प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड के अधिकारी ने सभी अस्पतालों को पत्र जारी कर निर्देश दिए हैं कि मेसर्स एसएमएस वाटर ग्रेस इन्वायरो प्रोटेक्ट प्रालि. को मेडिकल वेस्ट के लिए चयनित किया गया है। कंपनी जिले भर के अस्पतालों से मेडिकल वेस्ट नहीं उठा रही है। इसकी शिकायत वार्ड क्रमांक 66 सुंदरलाल शर्मा के पार्षद मृत्युंजय दुबे ने रायपुर नगर निगम कमिश्नर को पत्र लिखकर अवगत कराया है कि अस्पतालों का मेडिकल वेस्ट राजधानी में फेंका जा रहा है, मोहल्ले से गीला- सूखा कचरा उठाने वाली गाड़ियों में ही मेडिकल वेस्ट ले जाया जा रहा है, जबकि मेडिकल वेस्ट को अलग से गाड़ी में ले जाकर उसका निष्पादन नियमानुसार किया जाना चाहिए । मेडिकल वेस्ट का निष्पादन सही तरीके से नही होने के कारण राजधानी में आने वाली बारिश में महामारी फैलने का पूरा अंदेशा है। सामान्य कचरे के साथ नहीं ले जाया जाता -

अवशिष्ट पदार्थों को अस्पताल के अंदर और बाहर ले जाया जाता है. जो कर्मचारी ये काम करते हैं वे अपने हाथ में दस्ताने पहनते हैं और ये ध्यान रखा जाता है कि ये पदार्थ ट्राली से बाहर न फैलें, ऐसी गाड़ियों में साधारण कूड़ा नहीं रखा जाता है। जानकारों की माने तो मेडिकल वेस्ट को खुली गाड़ी में नहीं ले सकते हैं, यदि खुली गाड़ी में मेडिकल वेस्ट जा रहा है तो यह अपराध की श्रेणी में आता है। अस्पताल नहीं दे रहे कचरा -

मेडिकल वेस्ट कंपनी का कहना है कि जिले के सभी अस्पतालों को अवगत करा दिया गया है, लेकिन राजधानी की कुछ अस्पताल मेडिकल वेस्ट नहीं दे रहे हैं। वर्तमान में राजधानी की सिर्फ 378 अस्पतालों का मेडिकल वेस्ट उठाया जा रहा है। - मनोज सेन गुप्ता, कंपनी प्लांट हेड कंपनी दो महीने से मेडिकल वेस्ट उठा रही है। विभाग ने सभी अस्पतालों को पत्र लिखा गया है कि इस कंपनी को मेडिकल वेस्ट उठाने की जिम्मेदारी दी गई है। - प्रकाश कुमार रावड़े, पर्यावरण विभाग रायपुर डोर टु डोर कचरा उठाने वाली गाड़ी में मेडिकल वेस्ट जा रहा है। इस पर यदि रोक नहीं लगाई गई तो शहर में महामारी फैलने की आशंका है। 

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कहीं आप भी तो नहीं पी रहे मिलावटी दूध....

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डिटर्जेट मिले दूध में सोडा बहुत अधिक मात्रा में होता है जो किडनी, लीवर और हार्मोन्स आदि को नुकसान पहुंचा सकता है।

वैसे तो दूध सबसे हेल्दी ड्रिंक्स में से एक माना जाता है। इसमें विटामिन, कैल्शियम, प्रोटीन, नियासिन, फॉस्फोरस और पोटैशियम भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं। लेकिन आज के समय में बाजार में मिलने वाले दूध में तरह-तरह की मिलावट की जाने लगी है। जिससे इसकी पोष्टिकता पर नकारात्मक असर तो पड़ता ही है कई बार तो इससे आपके शरीस को नुकसान पहुंचने की संभावना भी रहती है। कैमिकल्स मिलाने के कारण ये लिवर और किडनी पर बेहद बुरा असर डालता है। हम आपको बता रहे हैं मिलावटी दूध को पहचानने के तरीके और डायटीशियन रिंकी जैन बता रहीं है इसे पीने से होने वाली परेशानियों के बारे में....

मिलावट कैसे करें पहचान नुकसान
डिटर्जेंट की मिलावट इसकी जांच कर के लिए दूध में पानी मिलाएं, यदि झाग आए तो दूध में डिटर्जेंट मिला हुआ है। डिटर्जेट मिले दूध में सोडा बहुत अधिक मात्रा में होता है जो किडनी, लीवर और हार्मोन्स आदि को नुकसान पहुंचा सकता है।
सिंथेटिक दूध सिंथेटिक दूध को हथेलियों के बीच रगड़ें यदि यह साबुन जैसा चिकना लगे तो यह सिंथेटिक दूध हो सकता है। इसके अलावा इसे गर्म करने पर यह हल्‍का पीला हो जाता है।
  • सिंथेटिक दूध बनाने के लिए यूरिया , कपड़े धोने वाला डिटर्जेंट, सोडा स्टार्च और फॉरेमैलिन मिलाया जाता है।
  • इससे फूड पॉयजनिंग हो सकती है। जिससे उल्टी और दस्त की शिकायत हो सकती है।
  • इसके अलावा ये किडनी और लीवर पर भी बुरा असर डालता है।
दूध में स्‍टार्च की मिलावट दूध में स्‍टार्च की मिलावट की जांच करने के लिए दूध में कुछ बूदें आयोडीन टिंचर या आयोडीन सॉल्‍यूशन की डालें, यदि दूध का रंग नीला हो जाए तो इसका मतलब दूध मिलावटी है।
  • स्टार्च मिलाने से दूध में हाइड्रोजन परॉक्साइड, अमोनिया, नाइट्रेट फर्टिलाइजर और न्यूट्रलाइजर आदि तत्वों की संख्या बढ जाती है।
  • जिससे आंतें, किडनी और लिवर के अलावा कई अंगों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
दूध में पानी दूध की कुछ बूंदों को किसी प्लास्टिक या किसी अन्य वस्तु के प्लेन टुकड़े पर डालें। इसके बाद इसे थोड़ा टेढ़ा करें यदि दूध की बूंद सफेद लकीर छोड़ते हुए धीरे-धीरे बह रहीं हो तो इसका मतलब दूध में पानी की मिलावट नहीं है। वहीं अगर सफेद निशान न छोड़े तो इसका मतलब पानी की मिलावट की गई है।

पानी की मिलावट करने से दूध पतला हो जाता है जिससे यह कम फायदेमंद रहता है।

बच्चों और वृद्ध लोगों के लिए ज्यादा खतरनाक

  • बच्चों का लिवर बड़ों की तुलना में ज्यादा सेंसिटिव और कमजोर होता है ऐसे में मिलावटी दूध इन्हें जल्दी और ज्यादा नुकसान पहुंचा सकता है।
  • वृद्ध लोगों का लिवर भी एक समय के बाद कमजोर होने लगता है ऐसे में मिलावटी दूध में यूरिया, अमोनिया, नाइट्रेट फर्टिलाइजर और स्टार्च जैसे कई हानिकारक तत्व होने के कारण उन्हे इसे पचाने में परेशानी को सामना करना पड़ता है।
  • इसके अलावा इसमें मिले कैमिकल शरीर से लड़ने की क्षमता पर भी नकारात्मक असर डालते हैं।

दवाओं के साथ भी हो सकता है कैमिकल रियेक्शन

  • डॉक्टर कई दवाओं को दूध के साथ सेवन करने की सलाह देते हैं । ऐसे में अगर आप कैमिकल्स युक्त मिलावटी दूध के साथ इन दवाओं का सेवन करते हैं तो कई बार इनका उल्टा असर भी हो सकता है।
  • इससे उल्टी, घबराहट या दवाओं का असर न होने जैसी कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है।

क्यों की जाती है मिलावट?

  • दूध में डिटर्जेट, यूरिया, अमोनिया, नाइट्रेट फर्टिलाइजर, स्टार्च, शुगर, ग्लूकोज और नमक मिलाने से इसकी मात्रा बढाई जाती है इनसे दूध में गाढापन आता है, और दूध में फैट भी बढ़ता है।
  • इन सब को मिलाने से दूध में खटास पैदा होता है जिसे रोकने के लिए इसमें न्यूट्रलाइजर भी मिलाया जाता है।
  • वहीं हाइड्रोजन परॉक्साइड और फॉर्मेलिन मिलाने से दूध को कई दिनों तक स्टाकर किया जा सकता है।
  • यूरिया और आमेनिया मिलाने से इसका टेस्ट खराब हो जाता है जिसे ठीक करने के लिए ही स्टार्च को मिलाते हैं।
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प्राणायाम से पाएं दीर्घायु.....

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से पाएं लंबा जीवन - हर कोई चाहता है कि जब तक वह जीवित रहे, स्वस्थ ही रहे। स्वस्थ रहते हुए ही अपने बच्चों को बड़ा होते देखे व अपने नाती-पोतों को भी खिला ले। स्वस्थ शरीर में रहते हुए लंबी उम्र जीना हर किसी की इच्छा होती है। योग से आप तन-मन से स्वस्थ रहने के साथ ही अपनी उम्र भी बढ़ाकर ज्यादा वर्षों तक जीवित रह सकते हैं। आइए जानते हैं योग के आसन के बारे में जिसे कुंभक नाम से भी जाना जाता है, यह आपकी उम्र बढ़ाने में सहायक होता है...

प्राणायाम क्या है?

कछुए की सांस लेने और छोड़ने की गति इंसानों से कहीं अधिक दीर्घ है। व्हेल मछली की उम्र का राज भी यही है। बड़ और पीपल के वृक्ष की आयु का राज भी यही है। वायु को योग में प्राण कहते हैं। इसलिए प्राणायाम को अपने नियमित जीवन का हिस्सा बनाएं। प्राणायाम का अभ्यास ऐसे करें : श्वसन-क्रिया जितनी मंद और सूक्ष्म होगी उतना ही मंद जीवन क्रिया के क्षय होने का क्रम होगा। यही कारण है कि श्वास-प्रश्वास का नियंत्रण करने तथा पर्याप्त समय तक उसको रोक रखने (कुंभक) से आयु के भी बढ़ने की संभावना बढ़ जाती है। इसी कारण योग में कुंभक या प्राणायाम का सर्वाधिक महत्व माना गया है।
 
नियमित प्राणायाम करने पर इसके लाभ पाने के लिए इन नियमों का पालन भी करें-
 
1. श्वास-प्रश्वास में स्थिरता और संतुलन से शरीर और मन में भी स्थिरता और संतुलन बढ़ता है। इससे रोग-प्रतिरोधक क्षमता का विकास होता है साथ ही मन के स्थिर रहने से इसका निगेटिव असर शरीर और मस्तिष्क पर नहीं पड़ता है।
 
2. काम, क्रोध, मद, लोभ, व्यसन, चिंता, व्यग्रता, नकारात्मता और भावुकता से मन-मस्तिष्क से ग्रस्त हो जाता है। यह रोगग्रस्त मन हमारे शरीर का क्षरण करता रहता है। इस पर कंट्रोल करने के लिए ही ध्यान करते है।
 
3. इसके लिए प्राणायाम का अभ्यास करते हुए वायु प्रदूषण से बचना जरूरी है। शरीर में दूषित वायु के होने की स्थिति में भी उम्र क्षीण होती है और रोगों की उत्पत्ति होती है। यदि आप लगातार दूषित वायु ही ग्रहण कर रहे हैं तो समझो कि समय से पहले ही रोग और मौत के निकट जा रहे हैं।

 
4. प्रतिबंध: अनावश्यक चिंता-बहस, नशा, स्वाद की लालसा, असंयमित भोजन, गुटका, पाऊच, तम्बाकू और सिगरेट के अलावा अतिभावुकता और अतिविचार के चलते बहुत से लोग समय के पूर्व ही अधेड़ होने लगे हैं और उनके चहरे की रंगत भी उड़ गई है। उक्त सभी पर प्रतिबंध लगाएं।
 
5. आहार संयम : अपना आहार बदलें। पानी का अधिकाधिक सेवन करें, ताजा फलों का रस, छाछ, आम का पना, जलजीरा, बेल का शर्बत आदि तरल पदार्थों को अपने भोजन में शामिल करें। ककड़ी, तरबूज, खरबूजा, खीरा, संतरा तथा पुदीने का भरपूर सेवन करें तथा मसालेदार या तैलीय भोज्य पदार्थ से बचें। हो सके तो दो भोजन कम ही करें।
 
6. यदि ज्यादा समय हो तो : शंख प्रक्षालन, ताड़ासन, त्रिकोणासन, पश्चिमोत्तनासन, उष्ट्रासन, धनुरासन और नौकासन भी करें। ये नहीं कर सकते तो प्रतिदिन सूर्य नमस्कार करें।
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R.O.NO.13073/4 " B
RO No 13073/4 A
RO no 13129/5 D
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